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Political crisis in state of Rajasthan - introspection for constitutional morality

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 In wake of the constitution crisis in state of Rajasthan,i t is worth remembering the views of Dr Ambedkar on Constitutional Morality as expressed by him in the Constituent Assembly, CONSTITUENT ASSEMBLY OF INDIA DEBATES (PROCEEDINGS)- VOLUME VII Thursday, the 4th November 1948 The Honourable Dr. B. R. Ambedkar  (Bombay: General):....Grote. the historian of Greece, has said that: "The diffusion of constitutional morality, not merely among the majority of any community but throughout the whole, is the indispensable condition of a government at once free and peaceable;since even any powerful and obstinate minority may render the working of a free institution impracticable, without being strong enough to conquer ascendency for themselves." By constitutional morality Grote meant "a paramount reverence for the forms of the Constitution, enforcing obedience to authority acting under and within these forms yet combined with the habit of open speech, of action subject only ...

डॉ0 अम्बेडकर, संविधान सभा और संवैधानिक नैतिकता

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              डॉ0 अम्बेडकर , संविधान सभा  और   संवैधानिक नैतिकता  लोकतंत्र में बहस महत्वपूर्ण है। विचारों से अहसमति लोकतंत्र का हिस्सा है। चुनी हुई संसद द्वारा पेश किए गए बिल पर मर्यादित बहस स्वीकार्य है। बहस में ऐतिहासिक, कानूनी, सांस्कृति, धार्मिक, नैतिक, अंतराष्ट्रीय कानूनी के तर्क रखे जाते है। संसद में पेश करने पर प्रारूप आमजन एवं सांसदों के लिए पढने, समझने के लिए उपलब्ध रहता है। सिविल सोसायटी भी अपना पक्ष रखती है। मिडिया भी पक्ष, विपक्ष, विषय के विशेषज्ञ, सिविल सोसायटी को एक मंच पर लाकर लोगो को प्रस्तावित कानून के बारे में शिक्षित करने का प्रयास करता है। संसद में बिल पर वोटिंग होती है बहुमद मिलने पर राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद बिल कानून के रूप में राजपत्र में छपने पर एक निश्चित दिन से लागू किया जाता है। उल्लेखनिय है कि इस प्रक्रिया में न्याय पालिका की भूमिका कानून बनने के बाद आती है।  जो भी निर्णय हो , सबको सम्मानपूर्ण उसको आदर करना चाहिए। इस प्रक्रिया का आदर करना संविधान नैतिकता कहलाती है जैसा...

नागरिकता कानून संशोधन और सांविधानिक नैतिकता

नागरिकता कानून संशोधन और सांविधानिक नैतिकता लोकतंत्र में बहस महत्वपूर्ण है। विचारों से अहसमति लोकतंत्र का हिस्सा है। चुनी हुई संसद द्वारा पेश किए गए बिल पर मर्यादित बहस स्वीकार्य है। बहस में ऐतिहासिक, कानूनी, सांस्कृति, धार्मिक, नैतिक, अंतराष्ट्रीय कानूनी के तर्क रखे जाते है। संसद में पेश करने पर प्रारूप आमजन एवं सांसदों के लिए पढने, समझने के लिए उपलब्ध रहता है। सिविल सोसायटी भी अपना पक्ष रखती है। मिडिया भी पक्ष, विपक्ष, विषय के विशेषज्ञ, सिविल सोसायटी को एक मंच पर लाकर लोगो को प्रस्तावित कानून के बारे में शिक्षित करने का प्रयास करता है। संसद में बिल पर वोटिंग होती है बहुमद मिलने पर राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद बिल कानून के रूप में राजपत्र में छपने पर एक निश्चित दिन से लागू किया जाता है। उल्लेखनिय है कि इस प्रक्रिया में न्याय पालिका की भूमिका कानून बनने के बाद आती है। जैसा कि सबको विदित है। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को पचास से ज्यादा रिटो के माध्यम से मा0 सर्वोच्य न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है। आज प्रकरण लम्बित है। जो भी निर्णय आएगा सबको सम्मानपूर्ण उसको आदर करना चाहिए। इस प्रक...

राष्ट्रीय आपदा में कर्तव्य बोध और संवैधानिक नैतिकता

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 देश में राष्ट्रीय आपदा घोषित की जा चुकी है।  आपदा वह क्षण है जहां हर राष्ट्र ,समाज  ,समुदाय , जाति , वर्ग और व्यक्ति के चरित्र के बारे में मालूम होता है।  सामान्य समय में दी जाने वाली शिक्षा , दीक्षा , व्यवहार , आचरण , प्रवचन आदि की वास्तविकता आपदा में ही मालूम होती है।  गणतंत्र भारत के 70 वर्ष हो चुके ,संविधान को लागू हुए 70 वर्ष हो चुके। संविधान सभा में 4 नवंबर 1948 को जब डॉक्टर अंबेडकर द्वारा पहली बार संविधान का प्रारूप संविधान सभा के सामने रखा गया था।  तब उन्होंने एक बात पर बहुत ज्यादा जोर देकर कहा था।  डॉ अंबेडकर ने कहा था कि भारत में संवैधानिक नैतिकता नई बात है।  भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज हजारों वर्ष पुराना है। परंतु संवैधानिक नैतिकता इस समाज के लिए भारत राष्ट्र के लिए भारत गणराज्य के लिए एकदम नई बात होगी।  इसका अर्थ सरल शब्दों में यही है कि  सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों / गाइडलाइंस को कितने प्रतिशत लोग सहज सरल तरीके से अपनाते हैं। यही नहीं इसका अर्थ यह भी है कि सरकार द्वारा आपातकाल में जारी निर्देशों जिसके अंदर की म...

Constitutional Morality : Dr Ambedkar

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Constitutional Morality being the logic behind the longest Constitution  of India, best explained by Dr Ambedkar in Constituent Assembly while introducing the draft Constitution in Constituent Assembly. CONSTITUENT ASSEMBLY OF INDIA DEBATES (PROCEEDINGS)- VOLUME VII Thursday, the 4th November 1948 The Honourable Dr. B. R. Ambedkar (Bombay: General):....Grote. the historian of Greece, has said that: "The diffusion of constitutional morality, not merely among the majority of any community but throughout the whole, is the indispensable condition of a government at once free and peaceable;since even any powerful and obstinate minority may render the working of a free institution impracticable, without being strong enough to conquer ascendency for themselves." By constitutional morality Grote meant "a paramount reverence for the forms of the Constitution, enforcing obedience to authority acting under and within these forms yet combined with the habit of open speech...

विद्यालय पाठ्यक्रम में सांविधानिक नैतिकता और श्री अरविन्द का आध्यात्मिक राष्ट्रवाद

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विद्यालय पाठ्यक्रम में  सांविधानिक नैतिकता और श्री अरविन्द का आध्यात्मिक राष्ट्रवाद भारत देश में दुर्भाग्यवश बदलाव और नवीनता के नाम पर पाठ्यक्रम का राजनीतिकरण किया जाता रहा है, जिससे प्राचीन भारत और मध्यकालीन भारत के इतिहास में भारतीय उत्कृष्टता, प्रगतिशिलता और पुरूषार्थ के भाव के विपरीत हीनता आत्मग्लानी के भाव को पढ़ाया जा रहा है। यह सर्वविदित है कि संविधान के आधारित लक्षण बदल नहीं सकते। इसी तर्ज पर भारतीय इतिहास के आधारित संरचना भी नहीं बदली जा सकती। इसका आधार और समाधान भारत के मूल हस्तलिपिबद्ध संविधान में मिलता है। भारत के संविधान में फोटोलिथोग्राफी रचना में भारत के इतिहास की झांकी स्पष्ट दिखती है। जो मूल संविधान में वैदिक काल के गुरूकुल का दृश्य रामायण से श्रीराम व माता सीता और लक्ष्मण के वनवास से घर वापस आने का दृश्य, श्री कृष्ण द्वारा अर्जून को कुरूक्षेत्र में दिए गए गीता के उपदेश, के दृश्यों को दर्शाया गया। इसी प्रकार गौतम बुद्ध व महावीर के जीवन, सम्राट अशोक व विक्रमादित्य के सभागार के दृश्य मूल संविधान में मिलते है। इसके अलावा अकबर, शिवाजी, गुरूगोबिन्द सिंह, ...