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Showing posts from June, 2019

National Motto of India-सत्यमेव जयते

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सत्यमेव जयते भारत सरकार एवं भारत के सभी उच्च न्यायालयों का नीति वाक्य है। सत्यमेव जयते का प्रयोग आम जन तक पहुंचाने का श्रेय डॉ . मदन मोहन मालवीय (25 दिसम्बर 1861-12 नवम्बर 1946) को जाता है जिन्हें वर्ष 2015 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। सत्यमेव जयते के सही अर्थ समझने से भारतीय दर्शन में सत्य की खोज की यात्रा के बारे में जानकारी मिलती है। इससे यह भी मालूम पड़ता है कि भारतीय ऋषि , मनिषि , संत , महापुरूष , योगी आदि सभी ने सत्य की खोज को मानव जीवन के चार पुरूषार्थ में से एक पुरूषार्थ माना है। साथ ही साथ सत्य के विभिन्न रूप एवं अभिव्यक्ति को स्वीकार किया है , जिसको एकम् सत  विप्रा बहुधा वदन्ति के रूप में समझा जा सकता है। इसी कारण भारत में सहिष्णुता और विविधता भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा   रही   है। अनेकान्त वाद के सिद्धांत को सत्य की यात्रा में महत्वपूर्ण सेतु माना है। व्यक्ति की चेतना की प्रगति के अनुपात में सत्य का साक्षा

Motto of Supreme Court of India -यतो धर्मस्ततो जयः

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यतो धर्मस्ततो जयः यह भारत के सर्वोच्च न्यायालय का नीति वाक्य है , जिसे महाभारत से लिया गया है। इसका अर्थ है जहां धर्म है वहां विजय है। भारतीय संस्कृति , दर्शन , इतिहास और शास्त्रों में धर्म शब्द का अर्थ और आशय पश्चिम की सेकुलर अवधारणा से पूर्णतः भिन्न है। धर्म शब्द को लेकर अक्सर वाद - विवाद बनाया जाता है। इसका कारण यह होता है कि धर्म शब्द की समझ एवं इसका सही अर्थ समझने में कमी रह गई। इस कारण भारतीय संस्कृति एवं शास्त्रों के भी दूरी बन जाती है। सम्राट अशोक के समय धर्म शब्द को यूनान में eusebeia शब्द से समझ कर इसका अर्थ समझा जो कि नैतिक आचरण तक सीमित था। इस कारण पश्चिम कभी भी भारत में प्रयुक्त शब्द धर्म को सही अर्थ में कभी भी नहीं समझ सका। आधुनिक काल में यही गलती जारी रही और आज धर्म शब्द के लिए पश्चिम में religion शब्द का प्रयोग किया है जो कि अपूर्ण है क्योंकि religion शब्द पंथ एवं सम्प्रदाय तक ही सीमित है। 2500 वर्षो

Dr. Syama Prasad Mookerjee on Hindi-National Language discussion in Constituent Assembly

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CONSTITUENT ASSEMBLY OF INDIA DEBATES (PROCEEDINGS) - VOLUME IX   Tuesday, the 13th September 1949 Dr. Syama Prasad Mookerjee on  Hindi National Language discussion in Constituent Assembly The Honourable Dr. Syama Prasad Mookerjee (West Bengal: General) Mr. President, Sir, we are considering a matter which is of vital importance, not to the people belonging to one or other of the provinces of India , but to the entire millions of India's population. In fact, Sir, the decision that we are about to take, even if we ignore for the time being the points of difference, vital though they may appear. to some, the decision that we are about to take is something which has never been attempted in the history of India for the last thousands of years. Let us therefore at the very outset realise that we have been able to achieve something which our ancestors did not achieve. Some Members have spoken not doubt out of the warmth of their feeling and have tried to emphas

श्रीअरविन्द का पूर्ण योग - योग दिवस विशेष

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पूर्ण योग योग योग सब करते कोई नहीं बताता कैसे करना योग योग के प्रकार बताते अनेक शब्दकोष में योग का अर्थ होता - जुड़ना कौन किससे जुड़ रहा क्या है दो मे संबंध ना करे योग , तो क्या है नुकसान ? करके योग , क्या खोया क्या पाया ? देखा इतिहास भारत का तो एक शब्द में लिखा भारत का इतिहास वो शब्द है ‘‘ योग ’’ । पूछे सब योग और योगी की उपयोगिता न पूछे कोई सत्य का मार्ग यही है भौतिकवाद की छाप अंताराष्ट्रीय योग दिवस के द्वार से पुनः भारत में आ रहा ‘‘ योग ’’ पश्चिम से आता तो लगता है यह पूरी तरह उपयोगी योग है स्वदेशी योग है स्वराज योग देता आर्य आदर्श योग है श्रीअरविन्द का पाँचवा संकल्प मिलता 15 अगस्त 1947 के संदेश में। कि पृथ्वी के विकास क्रम में योग की होगी अहम भूमिका योग मे है विश्व की समस्याओं का समाधान योग सबको देता समान अवसर नहीं करता भेद तमस , रजस और सत में योग करो आरम्भ किसी भी स्तर से योग है पूरी तरह