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Showing posts from June, 2023

भारतीय मौलिक चिंतन पर यूनिफार्म सिविल कोड का निर्माण

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यूनिफार्म सिविल कोड अर्थात् समान नागरिक संहिता पर आजकल पूरे देश में चर्चा चल रही है। यूनिफार्म सिविल कोड विषय पर चर्चा संविधान निर्माण के समय से ही चल रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि किसी भी राष्ट्र में यूनिफार्म सिविल कोड अथवा कॉमन सिविल कोड अथवा नैशनल सिविल कोड नहीं होना चाहिए या इसे किसी भी नाम से जाना जाए। इस चर्चा में मुख्य तत्व यह है कि भारत जैसे देश में यूनिफार्म सिविल कोड केन्द्र बिन्दू क्या होना चाहिए? 21वीं सदी में यूनिफार्म सिविल कोड का आधार महिलाओं के अधिकार, संवैधानिक नैतिकता, मानव अधिकारी, सेक्यूलरिज्म, जेण्डर समानता आदि मूल्यों और सिद्धांतों को सर्वोपरि रखकर चर्चा करनी होगी। परन्तु धर्म ग्रन्थों के अनुसार धार्मिक मान्यताओं, आस्थाओं को भी केन्द्र में रखा जाएगा। अतः भारत में यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने के लिए मौलिक चिंतन की आवश्यकता है। भारत में हिन्दू समुदाय के लिए हिन्दू कोड के तहत सभी हिन्दुओं पर यह लागू होता है। गणतंत्र भारत में संसद और न्यायपालिका के कारण हिन्दू समुदाय की महिलाओं को पुरूष के बराबर हक एवं बिना भेदभाव के सिविल कोड जैसे विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना

यूनिफॉर्म सिविल कोड -"मुल्ला का इस्लाम" के स्थान पर "अल्लाह का इस्लाम" का मार्ग प्रशस्त होगा

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आज पूरे देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चर्चा चल रही है।  यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चर्चा इतनी पुरानी है जितना कि हमारा संविधान।  संविधान बनाते समय संविधान सभा में इस विषय पर अनुच्छेद 35 के तहत चर्चा हुई थी जो कि आज के संविधान में अनुच्छेद 44 के तहत है।   यह बड़े आश्चर्य और अचरज की बात है कि जो दुविधा संदेह  संविधान को बनाते समय यूनिफॉर्म सिविल कोड  के बारे में थे वही उसी तरह की भ्रांति आज भी हमारे समाज में फैली हुई है।  लॉ कमीशन ऑफ इंडिया 2018 की रिपोर्ट कंसल्टेशन पेपर ऑन रिफॉर्म ऑफ फैमिली लॉ मैं इसका उल्लेख है कि संविधान सभा ने किन कारणों से यूनिफॉर्म सिविल कोड को मौलिक अधिकारों में नहीं जोड़ा।   उसमें पहला संदेह   यह था कि क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड और पर्सनल लॉ समानांतर रूप से लागू होंगे ? या यूनिफॉर्म सिविल कोड पूरी तरह से पर्सनल  लॉ    को  हटा देगा ? इसी के साथ यूनिफॉर्म सिविल कोड को माइनॉरिटी कम्युनिटी के पर्सनल लॉ  या उनके धार्मिक कानूनों से  भी जोड़कर भी देखा गया ? परंतु संविधान सभा की  डिबेट्स को पढ़ने  पर यह स्पष्ट होता है कि कहीं भी यूनिफॉर्म सिविल कोड  के नाम पर  धर्म के मौलिक  प

समस्त जीवन योग है- श्रीअरविन्द

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  "जीवन और योग दोनो को यथार्थ दृष्टिकोण से देखे तो सम्पूर्ण जीवन ही चेतन या अवचेतन रूप में योग है। जीवन के बाह्य रूपों के पीछे प्रकृति का योग दिखाई देता है। अभिव्यक्ति के द्वारा प्रकृति स्वयं की पूर्णता प्राप्त करने की तथा अपनी मूल दिव्य सत्ता के साथ एक होने की चेष्ठा कर रही है।मनुष्य प्रकृति का विचारशील प्राणी है, वह स्वचेतना के साधन से इसी प्रक्रिया को द्रूत वेग से पूरा कर सकता है।"    अतः इसी को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द कहते है ‘‘योग एक ऐसा साधन है जो व्यक्ति के क्रम विकास को शारीरिक जीवन के अस्तित्व के एक जीवन काल या कुछ वर्षों में यहाँ तक कि कुछ महीनों में ही साधित कर दे।’’ श्रीअरविन्द के अनुसार योग गुह्य और असामान्य वस्तु नहीं है।योगिक पद्धतियों और वैज्ञानिक प्रयोगों में कोई अंतर नहीं होता ।  जिस प्रकार विद्युत और भाप से प्रकृति को नियंत्रित किया जा सकता है उसी प्रकार योगिक पद्धतियाँ  पूर्णतः वैज्ञानिक होती है  । राजयोग में इस अनुसंधान और अनुभव पर आधारित है कि हमारी आंतरिक शक्तियों को अलग किया जा सकता है  उन्हें नए सिरे से मिलाया जा सकता है  फिर उनसे ऐसे नए कार

यूनिफॉर्म सिविल कोड-संविधान, इतिहास एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति

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 1. यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है।   2. संविधान सभा में चर्चा के दौरान यह स्पष्ट हो गया था कि अनुच्छेद 44 के अंतर्गत यूनिफॉर्म सिविल कोड को शीघ्र ही लागू किया जाए। इस संदर्भ में डॉ. अम्बेडकर द्वारा यूनिफॉर्म सिविल कोड के समर्थन में दिनांक 23 नवम्बर 1948 की चर्चा सभी भारतीयों को पढ़नी चाहिए। 3. भारतीय दण्ड संहिता 1973 एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 भारत के सभी लागों पर लागू होती है। इससे स्पष्ट है कि भारत के मुसलमानों ने बिना किसी विरोध के फौजदारी मामलों में शरिया कानून के लागू नहीं होने पर किसी प्रकार का कोई विरोध नहीं किया गया। पाकिस्तान व बांग्लादेश में जैसे कि शरिया कानून के अंतर्गत चोरी के अपराध के लिए चोरी करने वालों के हाथों को काट दिया जाता है। इसी प्रकार दो महिलाओं के साक्ष्य एक पुरूष के साक्ष्य के बराबर माना गया है।   4. भारत में गोवा राज्य में पुर्तगाल शासन से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है परन्तु गोवा में रह रहे मुसलमानों ने अपनी पहचान और अपनी संस्कृति को बरकरार रखा है।   5. भा

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर डॉ. अम्बेडकर का समर्थन

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23 नवम्बर 1948 को संविधान सभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चर्चा के दौरान डॉ . अम्बेडकर ने अपने विचार रखे थे। डॉ . अम्बेडकर के विचारों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड आधुनिक युग में सभी देशों के लिए अनिवार्य है। भारत में विशेषकर ऐतिहासिक कारणों के कारण यूनिफॉर्म सिविल कोड भारत की एकता , अखण्डता एवं परस्पर सामाजिक एवं राजनैतिक समरसता के लिए अपरिहार्य है।   " अतएव यह जो तर्क पेश किया गया है कि हमें ऐसा करना चाहिये या नहीं , वह मुझे अनुपयुक्त दिखाई देता है क्योंकि हमने वास्तव में उन सब विषयों पर कानून बना दिये हैं जो कि इस देश में एकविध व्यवहार संहिता में निहित होते हैं। अतएव अब यह पूछने का समय बीत चुका कि क्या हम ऐसा कर सकते हैं ? मेरा कहना है कि हम ऐसा पहले ही कर चुके हैं । संशोधन के विषय में मैं केवल दो ही बातें कहना चाहता हूं। मुझे पहली बात यह कहनी है कि जिन सदस्यों ने यह संशोधन रखे हैं वे कहते हैं कि मुसल