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Showing posts from June, 2022

​अग्निपथ योजना -- संविधान सभा की अभीप्सा

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  ​ अग्निपथ   योजना के बारे में आज मीडिया में कई स्तर पर डिबेट चल रही है एक प्रश्न पूछा जा रहा है ​,​ क्या अग्नीपथ योजना संविधान से संबंधित है ​ ?​ जिसका उत्तर सकारात्मक मिलता है ​​ जब हम  ​संविधान सभा की ​  डिबेट्स दिनांक 3 दिसंबर 1948 को  ​एच ​ वी कामत की डिबेट   का अध्ययन करते हैं ​ . ​ एच वी कामत कहते हैं   ​" मुझे अच्छी तरह स्मरण है  कि राष्ट्रीय योजना निर्माण समिति की कार्यवाही की रिपोर्ट में , जिसेकि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने स्थापित किया था तथा जिसका सभापतित्व पं. जवाहरलाल नेहरू ने किया था और जिसमें 3, 4 वर्ष से अधिक समय तक मेरे मित्र प्रोफेसर   के .टी. शाह ने महत्त्वपूर्ण सेवा की थी , उस रिपोर्ट में यह सुझाव रखा गया था कि सामाजिक सेवा के  लिये सब नागरिकों की अनिवार्य भर्ती होनी चाहिए ​ ​ और पं. नेहरू तो इस विषय पर बोलते हुये इतना तक कह गये थे कि किसी छात्र को विद्यालय की उपाधियां तब तक नहीं मिलनी चाहिए जब तक कि वह छः मास तक किसी प्रकार की सामाजिक सेवा न कर ले। ​"​ ....शस्त्र  ग्रहण करने के   कर्तव्य ​  को पालन करवाना तो राज्य के  लिये ‘ मरने ’ की भावना अथवा   इ

राष्ट्रीय शिक्षण की भूमिका --श्रीअरविंद

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  राष्ट्रीय शिक्षण की भूमिका -- श्रीअरविंद (श्रीअरविंद ने 1910 में ‘कर्मयोगिन्’ नामक पत्र में यह लेख माला लिखी थी ।) अंग्रेजी, जम्रन या अमरीकन विद्यालय या विश्वविद्यालय को कुछ थोड़े-से हेर-फेर के साथ अपना लेना और उस पर जरासा भारतीयता की ओप लगा देना ज्यादा आकर्षण रूप से सरल है और इसमें हम सोच-विचार या नये परीक्षण करने की आवश्यकता से बच जाते हैं।      हमारे मन में इससे ज्यादा गहरी, महान् और सूक्ष्म चीज की खोज है। उसे रूप देने में चाहे जितनी कठिनाइयां आये, हम एक ऐसी शिक्षा चाहते हैं जो भारतीय आत्मा के अनुकूल हो। यहां की आवश्यकताओं, यहां के स्वभाव और यहां की संस्कृति के साथ मेल खाती हो। हम ऐसी चीज की खोज में नहीं है जो केवल हमारे भूतकाल की अनुकृति हो, बल्कि विकसनशील भारतीय आत्मा उसकी भावी आवश्यकताओं, उसके भावी आत्म-निर्माण की महानता और उसकी शाश्वत आत्मा के अनुरूप हो।हमें अपने मन में इस चीज को स्पष्ट कर लेना है और इसके लिये हमें मौलिक तत्वों तक उतरना और उन्हें बड़े अंश में कार्यान्वित करना शुरू करने से पहले उन्हें मजबूत बनाना है। अन्यथा, इससे आसान और कुछ नही है कि झूठी, परन्तु ऊपर से आकर्षक ल

CONSTITUENT ASSEMBLY OF INDIA REMEMBERING MAHARISHI DAYANAND SARASWATI

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  CONSTITUENT ASSEMBLY OF INDIA   REMEMBERING MAHARISHI DAYANAND SARASWATI     CONSTITUENT ASSEMBLY OF INDIA DEBATES (PROCEEDINGS)-VOLUME II Tuesday, the 21st January, 1947   Mr. R. V. Dhulekar:   Some say that the Constituent Assembly is not a sovereign body; it is a creation of the British; its very existence has no meaning and the Constitution drawn up by it has no importance. I cannot have the audacity to say that they are devoid of sense but I do say that they are ignorant of Indian history. I need not dwell much on this point. One thousand years ago, India, for some reason, was decentralised or divided and failing to withstand the invasions of foreignerscame under their sway. Since that very time the fire of freedom has been, constantly blazing in the hearts of the Indian people. It was never extinguished. On the one hand, this fire appeared in the form of sages. Swami Ramdas, Goswami Tulsidas, Guru Nanak, Swami Dayanand , Ram Krishna Paramhansa, Vivekanand and