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क्रिमिनल लॉ  सुधार समिति

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क्रिमिनल लॉ  में सुधार के लिए केन्द्र सरकार द्वारा एक समिति का गठन किया गया है। जिसकी जिम्मेदारी एनएलयू दिल्ली को दी गई है। गृह मंत्रालय द्वारा गठित इस समिति का उद्देश्य है कि बदलते सामाजिक ] आर्थिक तकनीक परिस्थितियों में दण्ड संहिता में सुधार। समिति द्वारा एक प्रश्नावली बनाई गई है जिसे तीन भागों में बांटा गया है। भाग-ए में स्ट्रीक्ट लाइबिलिटी सिद्धांत को आईपीसी में लागू करने का   विचार रखा है। इसी प्रकार आईपीसी के अध्याय-तीन में अतिरिक्त सजा का जोड़ने का प्रस्ताव भी है। साथ ही अध्याय-तीन में वर्तमान में वर्णित सजाओं को समाप्त करने पर सभी लोगों से मत मांगा है। इसके अतिरिक्त सजा की अवधि एवं जुर्माने का पुर्न निर्धारण करने का प्रस्ताव भी है। महंगाई के अनुसार जुर्माना राशि के बढ़ाने/घटाने पर भी विचार किया जा रहा है। प्रश्नावली भाग-बी में आईपीसी के अध्याय-चार के विभिन्न धाराओं को संशोधित करने के लिए राय मांगी जा रही है। ‘ignorantia juris non excusat’ सिद्धांत पर चर्चा सामने आई है। जिसमें अध्याय-चार के अंतर्गत इस सिद्धांत को जोड़ने पर मंथन किया जाएगा। इस सिद्धांत के तहत को...

कोरोना महामारी-कानूनी  चर्चाएं ,मीडिया और प्रायश्चित

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कोरोना महामारी को लेकर कानूनी चर्चाएं बहुत चल रही है।  जिसमें यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि कौन सा कानून  किस अपराधी के लिए उपयुक्त होगा।    अलग-अलग राज्यों में  पुलिस द्वारा अलग-अलग धाराएं लगाई जा रही है। .यह एक  डिस्कशन का केंद्र बना हुआ है।   एपिडेमिक  डिजीज  एक्ट 1897 हो या राजस्थान एपिडेमिक डिजीज  एक्ट 1957  हो इन  में पब्लिक सर्वेंट या पब्लिक ऑफिसर द्वारा  जारी किए गए निर्देशों की अवज्ञा करने पर आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्रवाई की जा सकती है धारा 188 के तहत 6 महीने तक का कारावास या ₹200 तक का जुर्माना दिए जाने का प्रावधान है।  तालाबंदी  में  सरकारी आदेशों की पालना नहीं करने पर  6 महीने तक की सजा का प्रावधान है और फाइन जो कि ₹200 तक का भी है।  क्यों कानून बनाने वालों ने इतनी छोटी सी सजा रखी? जैसा कि ज्यादातर लोगों में यह एक भ्रांति बनी हुई है और एक डिस्कशन का पॉइंट भी बना हुआ है कि महामारी एक बहुत बड़ी विकट समस्या होती है. जिसमें लोगों को गंभीरता से व्यवहार करन...

1857-1930 section 124A of IPC

Seth Govind Das (C. P. and Berar: General): I belong to a family which was renowned in the Central Provinces for its loyalty. We had a tradition of being granted titles. My grandfather held the title of Raja and my uncle that of Diwan Bahadur and my father too that of Diwan Bahadur. I am very glad that titles will no more be granted in this country. In spite of belonging to such a family I was prosecuted under section 124 A and that also for an interesting thing. My great grandfather had been awarded a gold waist-band inlaid with diamonds. The British Government awarded it to him for helping it in 1857 and the words "In recognition of his services during the Mutiny in 1857" were engraved on it. In the course of my speech during the Satyagraha movement of 1930, I said that my great-grandfather got this waist-band for helping the alien government and that he had committed a sin by doing so and that I wanted to have engraved on it that the sin committed by my great-grandfa...