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Low voter turn out - reflection of low level of sense of constitutional morality

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Low voter turn out in phase one of national  election 2024- Lok Sabha bears signature of low level of sense of constitutional morality . Constitutional Morality ,  explained by Dr Ambedkar in Constituent Assembly while introducing the draft Constitution in Constituent Assembly. CONSTITUENT ASSEMBLY OF INDIA DEBATES (PROCEEDINGS)- VOLUME VI I Thursday, the 4th November 1948 The Honourable Dr. B. R. Ambedkar  (Bombay: General):....Grote. the historian of Greece, has said that: "The diffusion of constitutional morality, not merely among the majority of any community but throughout the whole, is the indispensable condition of a government at once free and peaceable;since even any powerful and obstinate minority may render the working of a free institution impracticable, without being strong enough to conquer ascendency for themselves." By constitutional morality Grote meant "a paramount reverence for the forms of the Constitution, enforcing obedience to authority acting unde

CONSTITUENT ASSEMBLY REMEMBERING MAHATMA JYOTI RAO PHULE

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  CONSTITUENT ASSEMBLY DEBATES (PROCEEDINGS) - VOLUME XI Monday, the21st November 1949 Shri H.J. Khandekar   Well Sir, even the social, political and religious reformers in the country like Gautama Buddha, Ramanuja, Kabir, Sant Tukaram, Raja Ram Mohan Roy, Swami Dayanand Saraswati ,  Paramahansa, Mahatma Jyoti Rao Phule , Vithal Ramji Shinde, Thakkar Bapa and last but not the least, Mahatma Gandhi, found  it very difficult to get rid of this ghost of untouchability. They agitated in the country but they did not succeed. Now, Sir, we have embodied an article No. 17 in this Constitution to remove  untouchability and I am sure that untouchability will be removed, but I have seen Act for removing untouchability in the Provinces, the Temple Entry Act and the Removal of disabilities Acts passed by the different Provinces in this country. What is the effect of these laws? Not an inch of untouchability has been removed by these laws and, therefore, if this law of removing untouchability remai

कबीर के राम - दशरथ के पुत्र राम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा

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 कबीर के राम - दशरथ के पुत्र राम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा  कबीर के राम राज्य को समझने के लिए कबीर के राम को समझना होगा | कबीर ने लिखा है एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा ,  एक राम का सकल उजियारा , एक राम जगत से न्यारा ||  कबीर के राम घट घट में है अर्थात प्रत्येक मनुष्य के हृदय में आत्मा के रूप में राम ही निवास करते हैं- व्यष्टिगत राम INDIVIDUAL DIVINE  | एक राम का सकल  उजियारा , इसका भाव है  समष्टिगत राम  COSMIC DIVINE से है| एक राम जगत से न्यारा  अर्थात परात्पर राम TRANSCENDENTAL DIVINE  है अर्थात जो सृष्टि की अभिव्यक्ति से परे हैं| तीन स्थितियों  के बारे में कबीर लिखते हैं |    एक राम दशरथ का बेटा - को समझाने पर ही सनातन परंपरा को  समझा जा सकता है क्योंकि दशरथ के पुत्र के रूप में स्वयं राम   TRANSCENDENTAL DIVINE  ही मानव की देह धारण कर  क्रम  विकास में विधि के विधान के अनुसार भूमिका निभाते हैं- जिसे अवतार कहा जाता है | अवतार को लेकर बहुत भ्रांतियां हैं क्योंकि आधुनिक मानस , पाश्चात्य दृष्टि भारतीय दर्शन    में    अवतार के सिद्धांत की गहराई तक गोता लगाने में असमर्थ रही

धर्म, ब्रह्म,अवतार,कर्मयोग और यज्ञ के पांच दीपक

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  22 जनवरी को  पांच दीपक प्रज्वलित करूंगा जो प्रतीक होंगे -  धर्म,   ब्रह्म, अवतार, कर्मयोग  और  यज्ञ के   | पहले दीपक धर्म का - श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के लोगों को स्मरण करूंगा | श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का आदर्श वाक्य है "रामो   विग्रहवान्   धर्म:" (भगवान श्रीराम धर्म के मूर्तरूप    हैं)।वाल्मीकि रामायण के अरण्य कांड का पूरा श्लोक इस प्रकार है "रामो विग्रहवान्   धर्म: , साधु: सत्य पराक्रम: , राजा सर्वस्य लोकस्य , देवानामीव वासव: ''. यह श्लोक तब का है जब रावण मारीच से माता सीता के अपहरण में सहायता मांगता है. सहायता से पूर्व मारीच रावण को बुरा भला भी कहता है. इस श्लोक में मारीच श्रीराम की वैशिष्ट्य यानी विशेषताएं बयां करता है.   भारतीय संस्कृति ,  सभ्यता ,  विरासत और आध्यात्मिकता में धर्म का क्या अर्थ है ? यह समझने के लिए    यह निति वाक्य सबसे सर्वश्रेष्ठ    है | अवतार का दीपक   - अवतार को लेकर बहुत भ्रांतियां हैं क्योंकि आधुनिक मानस , पाश्चात्य दृष्टि भारतीय दर्शन  में  अवतार के सिद्धांत की गहराई तक गोता लगाने में असमर्थ रही है |

धर्मपालन के आदर्श प्रतिमान हैं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम

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  श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का आदर्श वाक्य है "रामो  विग्रहवान्  धर्म:" (भगवान श्रीराम धर्म के मूर्तरूप   हैं)। वाल्मीकि रामायण के अरण्य कांड का पूरा श्लोक इस प्रकार है "रामो विग्रहवान्  धर्म: , साधु: सत्य पराक्रम:, राजा सर्वस्य लोकस्य, देवानामीव वासव:''. यह श्लोक तब का है जब रावण मारीच से माता सीता के अपहरण में सहायता मांगता है. सहायता से पूर्व मारीच रावण को बुरा भला भी कहता है. इस श्लोक में मारीच श्रीराम की वैशिष्ट्य यानी विशेषताएं बयां करता है.   भारतीय संस्कृति , सभ्यता , विरासत और आध्यात्मिकता में धर्म का क्या अर्थ है? यह समझने के लिए   यह निति वाक्य सबसे सर्वश्रेष्ठ   है |   श्रीराम के बारे   में   श्रीअरविन्द   लिखते   है  -   एक पुत्र के रूप में श्रीराम का कर्तव्य था आत्म त्याग । अपना साम्राज्य छोड़कर एक भिक्षुक और एक सन्यासी बन जाना । उन्होंने यह प्रसन्नतापूर्वक दृढ़ता के साथ किया। लेकिन जब सीता अपह्त हो गयी तब एक पति के रूप में उनका कर्तवय था  अगर रावण अपने कुकृत्य पर अड़ा रहे तो एक क्षत्रिय की तरह आगे बढ़ कर उसकी हत्या कर देना। इस कर्तव्य