राष्ट्रीय आपदा में कर्तव्य बोध और संवैधानिक नैतिकता
संवैधानिक नैतिकता की जब बात करते हैं तो उसमें मैं मौलिक अधिकारों की बजाय पहले मूल कर्तव्य के बारे में बात करता हूँ। भारत की संस्कृति कर्तव्य प्रधान रही है। संविधान के भाग 4 क़ में अनुच्छेद 51 क में चौथा जो मूल कर्तव्य है वह स्पष्ट रूप से यह कहता है कि देश की रक्षा करें और आव्हान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें। क्या आज सोशल डिस्टेंसिंग का आह्वान नहीं किया गया है ?आज देश की रक्षा सोशल डिस्टेंसिंग में नहीं है ? आज हमें सोशल डिस्टेंसिंग के नियम की पालना करने के लिए आह्वान किया गया है और हर नागरिक का यह दायित्व है कि वह सोशल डिस्टेंसिंग के नियम की पालना करें और राष्ट्र की सेवा करें।
कर्तव्य बोध में कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे प्रशासन की सख्ती में कमी ,लोगों की संवेदनशीलता और समझ में कमी , भ्रामक प्रचार से पीड़ित लोग जैसे माइग्रेंट लेबर द्वारा दिल्ली उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर इकट्ठा होना . कोरोना महामारी के संक्रमण में यह भी बात सामने आई है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 28 पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। इससे सरकारी विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा दी जावे। संविधान सभा में भी प्रश्न उठा था और उस वक्त डॉक्टर अंबेडकर द्वारा अनुच्छेद 28 में धार्मिक शिक्षा को नहीं देने का कारण बताया गया था कि कुछ धर्म जैसे इस्लाम और क्रिश्चियनिटी एंटीसोशल और नॉन सोशल है. 1948 में भारत के विभाजन के कारण इस तर्क के कारण धार्मिक शिक्षा को सार्वजनिक विद्यालयों और महाविद्यालयों से अलग कर दिया गया। अल्पसंख्यक शब्दों का प्रयोग संविधान में अस्वीकार्य है क्योंकि जिस राज्य में सबको समानता का अधिकार मिला हो उसमें धर्म के नाम पर विशेष दर्जा दिया जाना समानता के अधिकार एवं सेकुलरिज्म के विरुद्ध है। इसका परिणाम यह है कि कर्तव्य बोध को क्षीण कर रहा है क्या कारण है कि सरकार द्वारा जारी निर्देशों की पालना के बाद फतवे जारी किए जाने की अपेक्षा है ? जिससे कर्तव्य बोध को जगाया जा सके।भारत की संविधानिक नैतिकता यह अपेक्षा करती है की सामूहिक कार्य में धर्म की मर्यादा छुपाई नहीं जावे। किसी भी धर्म में जो भी सिद्धांत , नीति ,आचरण ,व्यवहार , वचन , व्रत, आपसी सहअस्तित्व को कमजोर करें उस को अस्वीकार करें। इस प्रकार की स्पष्टता के कारण ईमानदार और सत्यनिष्ठ धर्म के लोगों की स्वीकार्यता पड़ेगी और धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों का दबदबा कम होगा.
दवा ,दुआ , सोशल डिस्टन्सिंग और दो वक्त की रोटी तालाबंदी के दौरान सबसे महत्वपूर्ण पहलू है . जिन्हें संक्रमण हो गया है वह चिकित्सक से सलाह लेकर पूरी दवा ले। वे लोग जो घर पर आइसोलेटेशन- स्टे होम में है उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह घर पर रहकर जो लोग संक्रमित हैं उनके ठीक होने के लिए ईश्वर से दुआ करें और जब भी जरूरत हो तो राष्ट्र में उत्साह वर्धन के लिए सामूहिक संकल्प को सिद्ध करें। इस दौरान कई लोग ऐसे हैं जिनको खाने और रहने की आवश्यकता है ऐसे लोगों को अपनी क्षमता अनुसार भोजन या रुकने का स्थान देवे
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