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समस्त जीवन योग है- श्रीअरविन्द

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  "जीवन और योग दोनो को यथार्थ दृष्टिकोण से देखे तो सम्पूर्ण जीवन ही चेतन या अवचेतन रूप में योग है। जीवन के बाह्य रूपों के पीछे प्रकृति का योग दिखाई देता है। अभिव्यक्ति के द्वारा प्रकृति स्वयं की पूर्णता प्राप्त करने की तथा अपनी मूल दिव्य सत्ता के साथ एक होने की चेष्ठा कर रही है।मनुष्य प्रकृति का विचारशील प्राणी है, वह स्वचेतना के साधन से इसी प्रक्रिया को द्रूत वेग से पूरा कर सकता है।"    अतः इसी को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द कहते है ‘‘योग एक ऐसा साधन है जो व्यक्ति के क्रम विकास को शारीरिक जीवन के अस्तित्व के एक जीवन काल या कुछ वर्षों में यहाँ तक कि कुछ महीनों में ही साधित कर दे।’’ श्रीअरविन्द के अनुसार योग गुह्य और असामान्य वस्तु नहीं है।योगिक पद्धतियों और वैज्ञानिक प्रयोगों में कोई अंतर नहीं होता ।  जिस प्रकार विद्युत और भाप से प्रकृति को नियंत्रित किया जा सकता है उसी प्रकार योगिक पद्धतियाँ  पूर्णतः वैज्ञानिक होती है  । राजयोग में इस अनुसंधान और अनुभव पर आधारित है कि हमारी आंतरिक शक्तियों को अलग किया जा सकता है  उन्हें नए सिरे से मिलाया जा सकता...