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Showing posts from April, 2020

डॉ0 अम्बेडकर, संविधान सभा और संवैधानिक नैतिकता

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              डॉ0 अम्बेडकर , संविधान सभा  और   संवैधानिक नैतिकता  लोकतंत्र में बहस महत्वपूर्ण है। विचारों से अहसमति लोकतंत्र का हिस्सा है। चुनी हुई संसद द्वारा पेश किए गए बिल पर मर्यादित बहस स्वीकार्य है। बहस में ऐतिहासिक, कानूनी, सांस्कृति, धार्मिक, नैतिक, अंतराष्ट्रीय कानूनी के तर्क रखे जाते है। संसद में पेश करने पर प्रारूप आमजन एवं सांसदों के लिए पढने, समझने के लिए उपलब्ध रहता है। सिविल सोसायटी भी अपना पक्ष रखती है। मिडिया भी पक्ष, विपक्ष, विषय के विशेषज्ञ, सिविल सोसायटी को एक मंच पर लाकर लोगो को प्रस्तावित कानून के बारे में शिक्षित करने का प्रयास करता है। संसद में बिल पर वोटिंग होती है बहुमद मिलने पर राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद बिल कानून के रूप में राजपत्र में छपने पर एक निश्चित दिन से लागू किया जाता है। उल्लेखनिय है कि इस प्रक्रिया में न्याय पालिका की भूमिका कानून बनने के बाद आती है।  जो भी निर्णय हो , सबको सम्मानपूर्ण उसको आदर करना चाहिए। इस प्रक्रिया का आदर करना संविधान नैतिकता कहलाती है जैसा कि डॉ0 अम्बेडकर ने संविधान प्रारूप को पेश करते समय 04 नवम्बर 1948 में संव

एनआरसी पर कागजों के कारण फैल रही है भ्रांतियां

एनआरसी पर कागजों के कारण फैल रही है भ्रांतियां आसाम राज्य में एनआरसी लागू करने पर लोगों को परेशानियों के बारे में बोला जाता है और लिखा भी जाता है। इसमें प्रमुख कारण यह बताया जाता है कि आसाम में एनआरसी की सूची में नहीं जुड़ने का कारण एक मात्र जन्म प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं कराना पाया गया। तथ्यात्मक रूप से गलत है। इससे यह भ्रांति फैलाई भी जा रही है कि स्वयं या पूर्वज के जन्म प्रमाण पत्र नहीं होने पर सभी को आसाम जैसे परेशानी का सामना करना पड़ेगा। जबकि एनआरसी में नाम जुड़वाने के लिए एक दर्जन से ज्यादा में से एक भी दस्तावेज होने पर एनआरसी में नाम जुड़वाना पर्याप्त माना गया है। जन्म प्रमाणपत्र के अलावा दस्तावेजों पर चर्चा नहीं करने पर भय व आतंक का माहौल तथाकथित बुद्धिजीवी फैला रहे है। राजनीतिक दल भी इस असमंजस का फायदा उठा वोट बैंक की राजनीति से फायदा लेने में कोई संकोच नहीं कर रहे है। 1951 के एनआरसी में स्वयं या पूर्वज के नाम होन