भारत बोध कराती संविधान की कलाकृतियाँ
भारत बोध कराती संविधान की कलाकृतियाँ
भारत के संविधान का पहला अनुच्छेद ‘‘भारत’’ से शुरू होता है। भारत के
संविधान में लिखा है कि भारत राज्यों का संघ होगा। राज्यों का विवरण पहली अनुसूची
में मिलता है। यह भारत का परिचय 1950 से
लागू होता है, परन्तु भारत को जानने के लिए संविधान सभा ने
कला के माध्यम से केवल संकेत ही नहीं वरन भारत के इतिहास के कालखण्ड में युग धर्म
व युग प्रवर्तक घटनाओं का उल्लेख कर भारत बोध "Idea of India" का नक्शा हमारे सामने रखा है। भारत बोध "Idea of India" एक सर्वांगीण विचार है। भारत के भूगोल, अंतर्राष्ट्रीय सीमा, प्राणिक प्रचंडता बौधिक शक्ति और अध्यात्म के
अभाव में भारत बोध अधूरा ही रहेगा। वैदिक काल से 21वीं सदी तक के इतिहास में उतार-चढ़ाव की विश्लेषण भारत बोध का अभिन्न
अंग रहेगा।
षड़दर्शन- न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदान्त , इस बात का प्रमाण है कि सत्य के पुर्नजन्म को
विभिन्न दरवाजो से भारत ने स्वागत किया है। छह दर्शन समान्तर रहे है। सभी की
विशिष्ठता है। भारत ने सभी को स्वीकारा है। किसी भी दर्शन के इतिहास में
पुर्नजागरण का पुनरूत्थान को कारण नहीं माना। बल्कि सनातन सत्य की अभिव्यक्ति
मात्र मानकर ‘‘एको अहं, द्वितीयो नास्ति’’ को ही बार-बार स्थापित किया
है।
यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि संविधान के मूल कर्त्तव्यों में जिस
सामासिक संस्तृति के बारे में लिखा है उसकी आधारशीला भारत की आध्यात्मिकता है
जिसके कारण संश्लेषण, एकीकरण, आत्मसात्करण
एक स्वभाव के रूप में सहज रूप से भारत की हवा में महसूस की जा सकती है। दूसरे
शब्दों में कहे तो भारत की पाचन शक्ति अद्वितीय है।
संविधान सभा ने संविधान में कलाकृतियाँ उकेरने की जिम्मेदारी शांति निकेतन
के नन्दलाल बोस की दी थी | भारत का संविधान 22
भागों में बंटा है। सभी भाग भारतीय संस्कृति, सभ्यता, इतिहास
और विरासत से शुरू होते है। भाग 1
में मोहनजोदाड़ो की मोहर का चित्र दर्शाता है कि भारत की सभ्यता मोहन जोदाड़ो से
आरम्भ होती है। मुहर एक राज्य का प्रतीक है। मुहर-लोगो-एक व्यवस्था सम्प्रभुता को
दर्शाता है। पुरातत्त्व की दृष्टी से संसार की प्राचीनतम सभ्यता है। हड़प्पा, सिंधु सभ्यता व सरस्वती नदी, आर्य पर सेटेलाईट इमेजिंग, डीएनए शोध, भू-विज्ञान, हाइड्रोडायनेमिक्स, पुरातत्वविज्ञान, पुरालेखाशास्त्र के आधार पर 19वीं
सदी के उपनिवेशी इतिहास पर नए प्रमाणों व निष्कर्ष को स्वीकार करने की जरूरत है।
क्योंकि उक्त नए तथ्यों के अभाव में इन विषयों पर ग्रहण लगा हुआ था। आज विज्ञान ने
उस ग्रहण को पूर्ण रूप से हटा दिया है। जहां स्पष्ट हो गया है आर्य आक्रमण
सिद्धांत एक मिथ्या है।
भाग 2 में वैदिककाल के गुरूकुल का चित्र ज्ञान, बौद्धिकता, आध्यात्मिकता, शोध के बारे में इंगित करता है जो कि एक समृद्ध
व शांति के अभाव में सम्भव नहीं है। वेदो के रचिता अपौरूष्य माना है। भारतीय चिंतन
शास्त्रार्थ का स्वागत करता रहा है। योग, सांख्य, वेदांता, विशिष्ट
वेद, मिमांसा, उपनिषेद
के महावाक्य - ‘‘अहम् ब्रह्मास्मि’’
‘‘वासुदेवः सर्वम-एकोहम बहुस्याम’’ इसकी अनुभूति आज भी हमारे संतो, धर्मगुरूओ के माध्यम से सहज ही जिज्ञासु, मुमुक्षु को उपलब्ध है। आधुनिक भारत में इसका
उदाहरण रामकृष्ण परमहंस, स्वामीविवेकानन्द, श्रीअरविन्द आदि के जीवन से मिलता है।
भाग 3 में महाकाव्य रामायण की कलाकृतियाँ है। रामायण
एक ऐसा ग्रंथ है जिसके द्वारा भारत की संस्कृति एवं जीवन मूल्यों को समझा जा सकता
है। वहां राजधर्म, पुत्रधर्म, पत्नीधर्म
प्रजाधर्म, गुरूधर्म, शिष्यधर्म
आदि मानवीय संबंधों को निभाने में द्वंद व संशय का दूर करता है एवं चार पुरूषार्थ
में समन्वय स्थापित कर समाज को दिशा देता है| जिसमें स्थूल जगत, जड़ जगत व सूक्ष्म जगत के प्रभावों के साथ-साथ
पुनर्जन्म, कर्म, ब्रह्म, यज्ञ के बारे में भी समझाता है। रामायण के
वैशक्तिकरण भी हमे याद रखना चाहिए। अद्वैत जिसमें ईश्वर की सृष्टि में धर्म ही राह
पर चलने में जीत का आश्वासन, रामायण
का सार है।
श्री राम ,मातासीता और लक्ष्मण जी को पुष्पक यान पर अयोध्या लौटे हुए चित्र प्रश्न उठाता है। इस चित्र को क्यों चुना गया है ? रावण वध, माता सीता का
अपहरण ,हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी वाले पर्वत को उठाकर लाने वाले का चित्र भी उकेरा
जा सकता है। इसका उत्तर मिलता है कि श्रीराम
ने लंका का सिंहासन स्वीकार नहीं किया और न ही लक्ष्मण जी को सोने की लंका का सिंहासन दिया | अधर्म के स्थान पर धर्म की स्थापना कर
मातृभूमि का चुनाव किया । भारत ने कभी भी भूमि हथियाने के लिए युद्ध नहीं किया |
संस्कृत में लिखा है "जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी", जिसका अर्थ है "माँ और मातृभूमि स्वर्ग से
भी श्रेष्ठ हैं", की याद दिलाता है | यह एक गहन कथन है जो भारतीय
संस्कृति में गूंजता है और कालातीत महत्व रखता है।यह वाक्यांश वाल्मीकि की
रामायण में दो श्लोकों में आता है और यह उस अनूठे और अपूरणीय बंधन पर जोर देता है
जो एक व्यक्ति अपनी माँ और उस स्थान के साथ साझा करता है जहाँ वह रहता है। भारतीय
संस्कृति में, माँ को निस्वार्थ प्रेम, पोषण देखभाल और बलिदान का अवतार माना जाता है।
इसी तरह, मातृभूमि किसी की जड़ों, विरासत और अपनेपन की भावना का प्रतिनिधित्व
करती है। साथ में, वे उच्चतम आदर्शों और मूल्यों का प्रतीक हैं
जिन्हें कोई व्यक्ति सबसे ऊपर रखता है।
भाग 4 में महाभारत के धर्मयुद्ध कुरूक्षेत्र में
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण और अर्जून का संवाद मानव जाती
का संवाद है। अर्जून के प्रश्न हर व्यक्ति के प्रश्न है। जीवन में द्वंद का उत्तर
आध्यात्मिक ज्ञान में श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया है। यही सनातन धर्म का आधार है।
यह अतिश्योक्ति नहीं होगी कि स्वतंत्रता संग्राम में गरमदल के लिए गीता प्रेरणा
स्त्रोत थी। जहां धर्म की रक्षा के लिए सशस्त्र क्रांति को उचित ही नहीं बल्कि
अनिवार्य शर्त के रूप में क्रांतिकारियों ने बेड़ा उठाया था।
भाग 5 में महावीर का चित्र मिलता है उस कालखण्ड में अहिंसा
परमो धर्म की गुंज सुनाई देती है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि अहिंसा परमो धर्म
भारतीय समाज के लिए नवीन सिद्धांत था। भगवान महावीर के अनेकांतवाद सिद्धांत की
आवश्यकता आज केवल भारत को ही नहीं वरन पूरे विश्व को इसका ज्ञात करवाना, भारत का दायित्व है। भारत के अनेकांतवाद को यदि
भारतीय मुस्लीम लीग समझती तो भारत का बंटवारा रूक सकता था। विश्व शांति और कल्याण के लिए एक सफल सिद्धांत साबित हो सकता है।
भाग 6 में भागवान गौतम बुद्ध की कलाकृती है। बुद्ध को करूणा का प्रतीक माना है। ऐसा माना
जाता है कि जब बुद्ध को निर्वाण उपलब्ध हो रहा था तो वे इसलिए रूक गए कि वे चाहते
थे कि अन्य पिपासु/मुमुक्ष को भी निर्वाण प्राप्त हो। अतः सारनाथ में पहला वचन दे
आगामी यात्रा शुरू की। अंतिम समय तक वचन देते रहे। गौतम बुद्ध का वचन था - आत्म
दीपो भवः। गौतम बुद्ध के निर्वाण को सनातन धर्म में एक पड़ाव माना गया है। जहां ‘‘जीवनमुक्त’’ योगी को समाज का आदर्श पुरूष माना
है गीता की भाषा में लोक संग्रह के लिए वह समाज में रहता है और आध्यात्मिक उपलब्धि
का आनन्द भी पाता रहता है।
संविधान के अन्य भागों में सम्राट अशोक, गुप्त काल की कला, उडीसा की मूर्तिकला, राजा विक्रमादित्य का दरबार, नटराज, भागीरथ
का तप, नालंदा के चित्र प्राचीन भारत की याद दिलाते है |नालंदा का चित्र
स्वामी विवेकानंद के भाषण कि याद दिलाता है जहाँ विश्व को भारत की भेंट का स्मरण दिलाते हैं (बरूकलीन
मानक संगठन, फरवरी 27, 1895 )–
यही नहीं बहुत कुछ गणित के क्षेत्र में
बीजगणितीय,
रेखागणित एवम् ज्योतिष विज्ञान में अपना योगदान
दिया है । आधुनिक विज्ञान और मिश्रित गणित, इन सब की खोज भारत ने की है । यहां तक की दस की संख्या का ज्ञान भी
भारत ने विश्व को दिया है । आधुनिक सभ्यता की आधारशिला की नींव भी भारत ने विश्व
को दी है और यह सब संस्कृत में लिखा हुआ है ।जर्मनी के दार्शनिक शोपुन्यहर के
अनुसार दर्शनशास्त्र में भी भारत की विश्व में मुख्य भूमिका रही है । संगीत में
संकेत पद्धति की देन भी भारत है । आधारभूत ध्वनि एवम् मधुर लय का उपयोग ईसा से 350 वर्ष पूर्व किया जाता था । जबकि योरोप में इसका
प्रभाव 11
वीं शताब्दी में आया। भाषा शास्त्र में संस्कृत
भाषा को योरोप की सभी भाषाओं की जननी माना जाता है, जिसको आज निरर्थक भाषा माना जाता है ।साहित्य के क्षेत्र में हमारे
महाकाव्य,
कविताएं और नाटक इत्यादि किसी भी अन्य भाषाओं
से उत्तम माना जाता है । हमारे नाटक 'शकुन्तला'
का सारांश जर्मनी के महान कवि ने लिखा एवम्
इसका नाम "Heaven
and Earth United " रखा
। इसके अलावा भारत ने एओस्प की कहानियां दी और यह कहानियां एओस्प (Aesop's
Fables) द्वारा हमारी संस्कृत की एक किताब हे चुराई
गईथी । अरेबियन नाइट्स,
सिंडरेला तथा Bean Stalks जैसी कहानियां भी भारत की देन है । उत्पादन के
क्षेत्र में कपास और रंगों का उत्पादन सबसे पहले भारत में हुआ। आभूषणों में भी
सबसे पहले काम भारत में हुआ था । अंत में शतरंज, ताश व पासा (dice) की खोज भारत ने की है ।
सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध के बाद युद्ध नहीं करने के निर्णय को
पश्चिम सम्राट अशोक की दुर्बलता बताता है। सम्राट अशोक के निर्णय को भारतीय मानको से
देखना होगा। तमस ,रजस और सत्व गुणों को
उत्तरोत्तर आरोहण के क्रम में देखा गया है। रामायण में हनुमान जी राजसिक गुणों और श्री राम जी सात्विक गुणों के मूर्तिमय चरित्र हैं। पश्चिम में स्पाइडर मैन ,सुपरमैन
आदि का गुणगान स्वीकार किया गया है| पश्चिम में राजसी गुणों के चरित्र को आदर्श के रूप में स्थापित
किया है |अत: पश्चिम सम्राट अशोक से युद्ध
,जो कि राजसी गुणों की मांग करता है, नहीं करने के निर्णय को हेय दृष्टि से देखता हैं|तो भारत अशोक के इस निर्णय को भारतीय संस्कृति के अनुरूप एक आदर्श के रूप में बधाई देता है और गणतंत्र भारत में
राष्ट्रीय स्तंभ में अशोक स्तंभ को जगह देकर गौरवान्वित महसुस करता है।
मध्यकालीन भारत के चित्रण में तीन चित्र अकबर, छत्रपति शिवाजी महाराज और गुरूगोबिन्द सिंह जी
उस काल खण्ड के संघर्ष, युद्ध, रक्तपात, जौहर, केसरी, नरसंहार की याद दिलाते है। जहां महाराणा प्रताप
एक बड़े भूखण्ड के अधिपति थे जिन्होनें बप्पा रावल, राणा कुम्भा,
राणा सांगा की विरासत को सर्वोपरि रखा, शिवाजी एक सशक्त राज्य के संस्थापक और
गुरूगोविन्द सिंह आस्था, धर्म और समता के सर्वोत्तम धर्म अधिकारी थे।
यह संघर्ष काल डॉ. अम्बेडकर के शब्दों में मुसलमानों के लिए गर्व और
हिन्दूओं के लिए शर्म है।( पुस्तक -पाकिस्तान या भारत का विभाजन ) जिनके बारे में ईमानदारी से
संवाद से ही भविष्य की नींव रखी जा सकती है।इसी काल खण्ड के बारे में रामधारी सिंह
दिनकर लिखते है कि बीसवीं सदी में आकर भारत का जो बंटवारा हुआ, उसका बीज मुगल-काल में ही शेख अहमद सरहिंदी के
प्रचार में था( पुस्तक - संस्कृति के चार अध्याय )। शेख सैफुद्दीन को औरंगजेब ने
अपना गुरू बनाया जिसका दादा शेख अहमद सरहिंदी था। औरंगजेब की वसीयत थी कि उसके
मरने के बाद उसका राज्य तीन बेटो में बांट दिया जाए। यह संयोग की बात है कि
पाकिस्तान की कल्पना पहले पहल इकबाल ने की जब वो मुस्लिम लीग का अध्यक्ष था और जिस
पीर को अपना गुरू बनाया व शेख अहमद सरहिंदी की ही परम्परा में पड़ता था। डॉ.
राजेन्द्र प्रसाद के पुत्र राजीव नैन प्रसाद की पुस्तक ‘‘राजा मानसिंह ऑफ
आमेर’’ मध्यकालीन भारत में राजा मान सिंह
की भूमिका पर गहन शोध है कि किस प्रकार राजनैतिक संधि कर भारत को धर्मांतरण की
आंधी से बचाया।
दारा सिखों की आत्मा का पुनर्जन्म और औरंगजेब के जिन्न को बोतल में
बंद करना अखंड भारत की मांग है। भारत बोध
में दारा सिखों का सम्मान और औरंगजेब का
निष्कासन बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में विदेशियों के वारे में संविधान सभा में आर.वी. धुलेकर कहते हैं “बाबर, हुमायूं, अकबर तथा अन्य जिन-जिन विदेशी शासकों ने अपने
को भारतीय मानने का जितने अंश में प्रयत्न किया उसी मात्रा में देशवासियों ने
उन्हें अपनाया”|
यूरोप के कदम जब भारत में पड़े तब मध्यकालीन भारत में विदेशी संस्तृति
के टकराव के कारण भारत क्षीण अवस्था में पहुंच चुका था, इस सम्बन्ध में भारत के पतन के तीन कारण सामने आते
हैं 1. प्राणिक
शक्ति का ह्रास, जीवन में आनन्द और रचनात्मक प्रतिका का बुझना, 2. प्राचीन बौद्विकता का रूद्ध होना और वैज्ञानिक
तथा समीक्षात्मक जागरूक मानस की मूर्च्छा, 3. आध्यात्मिकता
का मृत न होते हुए भी जीवन को तेजोदीप्त करने के कार्य से अलग हो जाना।
ब्रिटिश विद्रोह के चित्रण
के लिए टीपू सुल्तान और रानी रानी लक्ष्मीबाई का चित्र संविधान में मिलता है। 1857 की क्रांति ने आज़ाद भारत की धारणा का शंखनाद
किया था | वीर सावरकर ने 1857
के विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता का पहला युद्ध
कहा था। उन्होंने 1909 में “भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास”
नामक पुस्तक लिखी थी। यह मूल रूप से मराठी में लिखी गई थी जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा
प्रतिबन्ध किया गया था ।वीर सावरकर लिखते हैं
कि इतिहास लेखन में घटनाओं के पीछे सिद्धांतों
पर दृष्टि होनी चाहिए विमर्श को इतिहास का
दर्जा नहीं देना चाहिए जैसा कि 1857 में ब्रिटीश
के विरुद्ध भारतीय आक्रोश को ग़दर-म्युटिनी कहा गया जो की ब्रिटीश समर्थित विमर्श से ज्यादा कुछ नही
है |जबकि इतिहास लेखन की दृष्टि से 1857 के विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता का पहला युद्ध
कहना तथ्यपरक और सिद्धान्तिक रूप से युद्ध ही था | इसके समर्थन में वीर सावरकर लिखते
हैं कि जो सीता अपहरण को राम रावण युद्ध का कारण और कारतूस में गौ मॉस और सूअर के मॉस को 1857
के विद्रोह का कारण बताते हैं वह विमर्श और इतिहास
लेखन में अंतर नहीं जानते है| वीर सावरकर लिखते
हैं कि स्वधर्म और स्वराज के सिद्धांत राम
रावण युद्ध और 1857 के विद्रोह के कारण बने थे |
आधुनिक काल के संदर्भ में अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध स्वतंत्रता
संग्राम से सम्बन्धित चित्रण में महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को भारत
माता को आजाद करते हुए के चित्र संविधान
में मिलते है|इसी प्रकार विभाजन विभिषिका का चित्रण भी संविधान में मिलता है। नओखाली
के दंगे यह स्मरण करते हैं कि अखंड भारत का विभाजन तो हो गया पर किसी भी कीमत पर भविष्य
में कभी भी पुनः परिस्तिथि ना बने |
संविधान के अंतिम तीन भाग में हिमालय, रेगिस्तान और हिन्द महासागर का चित्र मिलता है।श्रीअरविन्द लिखते
है--
एक राष्ट्र के लिए क्या है? हमारी मातृभूमि क्या है? यह न तो पृथ्वी का टुकड़ा है, न वाणी की आकृति है, न ही मन की कल्पना है। यह एक शक्तिशाली शक्ति
है, जो राष्ट्र को बनाने वाली सभी लाखों इकाइयों की
शक्तियों से बनी है, जैसे भवानी महिषा-मर्दिनी सभी लाखों देवताओं की
शक्तियों से उत्पन्न हुई,
जो एक बल के एक द्रव्यमान में एकत्रित और एकता
में बंधी हुई थी। जिस शक्ति को हम भारत, भवानी भारती कहते हैं, वह तीन सौ करोड़ लोगों की शक्तियों की जीवंत
एकता है; लेकिन वह निष्क्रिय है, तमस के जादू के घेरे में कैद है, अपने बेटों की आत्मग्लानि जड़ता और अज्ञानता।
हमने तमस से छुटकारा पाने के लिए भीतर के ब्रह्मा को जगाना है। CWSA खण्ड 06-07 पृष्ठ 83
भारत के मूल
संविधान (अंग्रेजी) को हस्तलिपिबद्ध/सुलेख करने का श्रेय प्रेम बिहारी नारायण (सक्सैना)
को जाता है और हिन्दी में सुलेखन करने का श्रेय बसंत कृष्ण वैद्य को मिलता है।भारत
के मूल संविधान की उद्देशिका का कला कार्य ब्योहर राम मनोहर सिन्हा द्वारा किया
गया। उद्देशिका पृष्ठ पर ब्योहर राम मनोहर सिन्हा ने अपने नाम के केवल राम शब्द
का उपयोग करते हुए हस्ताक्षर किए है। जयपुर के कृपाल सिंह शेखावत ने मूल संविधान
में कला कार्य में योगदान दिया। कृपाल सिंह शेखावत को 1974 में पद्मश्री व 2002 में शिल्पगुरू सम्मान से सम्मानित किया गया।
कृपाल सिंह शेखावत ने मूल संविधान में कई चित्र बनाये। कृपाल सिंह शेखावत ने जयपुर में वापस आकर परंपरागत ब्लू पोट्री कला
को वापस जिन्दा किया जिसमें जयपुर की महारानी गायत्री देवी ने उन्हें प्रोत्साहित
किया। |
धर्म शब्द को लेकर अक्सर वाद विवाद बनाया जाता है। इसका कारण यह होता है कि धर्म शब्द की समझ एवं इसका सही अर्थ समझने में कमी रह गई। इस कारण भारतीय संस्कृति एवं शास्त्रों के भी दूरी बन जाती है। सम्राट अशोक के समय धर्म शब्द को यूनान में eusebeia शब्द से समझ कर इसका अर्थ समझा जो कि नैतिक आचरण तक सीमित था। इस कारण पश्चिम कभी भी भारत में प्रयुक्त शब्द धर्म को सही अर्थ में कभी भी नहीं समझ सका। आधुनिक काल में यही गलती जारी रही और आज धर्म शब्द के लिए पश्चिम में religion शब्द का प्रयोग किया है जो कि अपूर्ण है क्योंकि religion शब्द पंथ एवं सम्प्रदाय तक ही सीमित है। 2500 वर्षों से चली आ रही त्रुटि लगातार जारी है, पहले eusebeia शब्द के माध्यम से और आज religion शब्द के माध्यम से। दोनों ही पश्चिमी शब्दों ने धर्म शब्द को ढक दिया, जिससे धर्म शब्द का सही अर्थ और आशय न तो पश्चिम वाले समझ पाये और ना ही भारत की आधुनिक शिक्षा धर्म का समग्रता से चिंतन दे पाई। धर्म शब्द के दुरूपयोग का दूसरा उदाहरण है Secular का हिन्दी में धर्मनिरपेक्ष शब्द का उपयोग। यह जानते हुए भी कि संविधान में Secular के लिए पंथ निरपेक्ष शब्द का प्रयोग किया गया है। चार पुरूषार्थी में से एवं पुरूषार्थ धर्म को बताया । भारत में धर्म से आशय है व्यक्ति का देश , काल और परिस्तिथि के अनुसार व्यवहार जिसका आधार आध्यत्मिकता हो। अतः धर्म eusebeia और religion तक सिमित नहीं है | |
सूर्य प्रताप सिंह राजावत – अधिवक्ता राजस्थान उच्च न्यायालय
Comments
Post a Comment