Motto of Supreme Court of India -यतो धर्मस्ततो जयः
यतो धर्मस्ततो जयः
यह
भारत के सर्वोच्च
न्यायालय का नीति
वाक्य है, जिसे
महाभारत से लिया
गया है। इसका
अर्थ है जहां
धर्म है वहां
विजय है। भारतीय
संस्कृति, दर्शन, इतिहास और
शास्त्रों में धर्म
शब्द का अर्थ
और आशय पश्चिम
की सेकुलर अवधारणा
से पूर्णतः भिन्न
है। धर्म शब्द
को लेकर अक्सर
वाद-विवाद बनाया
जाता है। इसका
कारण यह होता
है कि धर्म
शब्द की समझ
एवं इसका सही
अर्थ समझने में
कमी रह गई।
इस कारण भारतीय
संस्कृति एवं शास्त्रों
के भी दूरी
बन जाती है।
सम्राट अशोक के
समय धर्म शब्द
को यूनान में eusebeia शब्द से
समझ कर इसका
अर्थ समझा जो
कि नैतिक आचरण
तक सीमित था।
इस कारण पश्चिम
कभी भी भारत
में प्रयुक्त शब्द
धर्म को सही
अर्थ में कभी
भी नहीं समझ
सका। आधुनिक काल
में यही गलती
जारी रही और
आज धर्म शब्द
के लिए पश्चिम
में religion
शब्द का प्रयोग
किया है जो
कि अपूर्ण है
क्योंकि religion
शब्द पंथ एवं
सम्प्रदाय तक ही
सीमित है। 2500 वर्षों
से चली आ
रही त्रुटि लगातार
जारी है, पहले
eusebeia शब्द के
माध्यम से और
आज religion शब्द के
माध्यम से। दोनों
ही पश्चिमी शब्दों
ने धर्म शब्द
को ढक दिया,
जिससे धर्म शब्द
का सही अर्थ
और आशय न
तो पश्चिम वाले
समझ पाये और
ना ही भारत
की आधुनिक शिक्षा
धर्म का समग्रता
से चिंतन दे
पाई। धर्म शब्द
के दुरूपयोग का
दूसरा उदाहरण है
Secular का हिन्दी
में धर्मनिरपेक्ष शब्द
का उपयोग। यह
जानते हुए भी
कि संविधान में
Secular के लिए
पंथ निरपेक्ष शब्द
का प्रयोग किया
गया है। चार
पुरूषार्थी में से
एवं पुरूषार्थ धर्म
को बताया है।
भारत को समझने
के लिए तीन
शब्दों का ज्ञान
जरूरी है कर्मन,
ब्रह्म एवं धर्म। भारत में धर्म से आशय है व्यक्ति का देश , काल और परिस्तिथि के अनुसार व्यवहार
जिसका आधार
आध्यत्मिकता हो। अतः धर्म eusebeia
और
religion तक सिमित नहीं है .
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