यूनिफॉर्म सिविल कोड पर डॉ. अम्बेडकर का समर्थन

23 नवम्बर 1948 को संविधान सभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चर्चा के दौरान डॉ. अम्बेडकर ने अपने विचार रखे थे। डॉ. अम्बेडकर के विचारों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड आधुनिक युग में सभी देशों के लिए अनिवार्य है। भारत में विशेषकर ऐतिहासिक कारणों के कारण यूनिफॉर्म सिविल कोड भारत की एकता, अखण्डता एवं परस्पर सामाजिक एवं राजनैतिक समरसता के लिए अपरिहार्य है।

 

"अतएव यह जो तर्क पेश किया गया है कि हमें ऐसा करना चाहिये या नहीं, वह मुझे अनुपयुक्त दिखाई देता है क्योंकि हमने वास्तव में उन सब विषयों पर कानून बना दिये हैं जो कि इस देश में एकविध व्यवहार संहिता में निहित होते हैं। अतएव अब यह पूछने का समय बीत चुका कि क्या हम ऐसा कर सकते हैं? मेरा कहना है कि हम ऐसा पहले ही कर चुके हैं संशोधन के विषय में मैं केवल दो ही बातें कहना चाहता हूं। मुझे पहली बात यह कहनी है कि जिन सदस्यों ने यह संशोधन रखे हैं वे कहते हैं कि मुसलमानों का निजी कानून, जहां तक इस देश का सम्बन् है, सारे भारत में अटल तथा एकविध था। मैं इस कथन को चुनौती देना चाहता हूं मेरे विचार में मेरे अधिकांश मित्र, जो कि इस संशोधन पर बोले हैं, यह सर्वथा भूल गये कि  सन् 1935 तक पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत में शरियत कानून लागू नहीं था। उत्तराधिकार तथा अन्य विषयों में वहां हिन्दू कानून का अनुसरण किया जाता था, यहां तक कि 1939 में केन्द्रीय विधान-मंडल को इस विषय में हस्तक्षेप करना पड़ा तथा पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के मुसलमानों पर हिंदू कानून का लागू होना बंद करवा कर वहां शरियत कानून लागू कराना पड़ा। केवल इतना ही नहीं। मेरे माननीय मित्र भूल गये कि 1937 तक पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के अतिरिक्त शेष भारत के भी विभिन्न भागों मे, यथा संयुक्तप्रांत, मध्यप्रांत तथा बम्बई में उत्तराधिकार के विषय में काफी हद तक मुसलमानों पर िंहन्दू कानून लागू था। उन्हें दूसरे मुसलमानों के साथ जो कि शरियत पर चलते थे, एक स्तर पर लाने के लिये 1937 में विधान-मंडल को हस्तक्षेप करना पड़ा तथा शेष भारत पर शरियत कानून लागू करने के लिये एक कानून बनाना पड़ा।

मेरे मित्र श्री करुणाकर मैनन ने मुझे बताया है कि उत्तरी मालाबार में मरुमकतायम कानून केवल हिंदुओं पर ही नहीं मुसलमानों पर भी लागू था स्मरण रखना चाहिये कि मरुमकतायम कानून मातृ-प्रधान कानून है पितृ-प्रधान कानून नहीं। अतएव उत्तरी मालाबार में मुसलमान अब तक मरुमकतायम कानून का अनुसरण करते थे। अतएव ऐसा कहने से कोई लाभ नहीं है कि मुस्लिम कानून एक अटल कानून है जिसका वे प्राचीन समयों से अनुसरण करते रहे हैं वह कानून उस रूप में कुछ भागों में लागू नहीं था और दस वर्ष पहले लागू किया गया था। अतएव यदि वह आवश्यक जान पड़े कि समस्त नागरिकों पर उनके धर्म का विचार करते हुए एक ही व्यवहार संहिता लागू करने के लिये अनुच्छेद 35 में निर्देशित नयी व्यवहार संहिता में हिंदू कानून के कुछ अंश रख दिये गये हैं। इसलिये नहीं कि वे हिंदू कानून के अंश हैं किन्तु इसलिए कि वे सर्वाधिक उपयुक्त जान पड़ते हैं। तो मुझे विश्वास है कि किसी मुसलमान को यह कहने का अधिकार नहीं होगा कि व्यवहार संहिता के बनाने वालों ने मुस्लिम जाति की भावनाओं के प्रति कठोरता बरती है।''



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