आजादी का अमृत महोत्सव एवं श्रीअरविन्द सार्धशती (1872-2022)
आजादी का अमृत महोत्सव एवं श्रीअरविन्द सार्धशती ¼1872&2022½
15 अगस्त
1947 को भारत को
स्वतंत्रता प्राप्त हुई। 15
अगस्त 2022 को 75 वर्ष
पूरे होने पर
भारत सरकार द्वारा
इस पर्व को
उत्सव के रूप
में मनाने का
निर्णय लिया गया
है और इस
उत्सव का नाम
रखा है ^आजादी
का अमृत महोत्सव’। इस
विशेष अवसर पर
कई कार्यक्रमों का
आयोजन किया जा
रहा है। यह
अवसर भारत के
सभी नागरिकों के
लिये विशेष महत्ता
रखता है। इस
अवसर पर हर
भारतीय को यह
विचार करना चाहिए
कि भारत को
आजाद कराने के
लिये लाखों-हजारों
ने संघर्ष कर
भारत को विदेशी
हुकुमत से आजाद
कराया। जिसको कि
हम राजनैतिक स्वतंत्रता
के नाम से
जानते है। परन्तु
राजनैतिक स्वतंत्रता का
अर्थ तब सार्थक
होता है जब
भारत में सामाजिक
एवं आर्थिक रूप
से एक&एक
भारतीय स्वयं को
सशक्त समझे साथ
ही राष्ट्र निर्माण
में सामाजिक] आर्थिक
एवं राजनैतिक भेदभाव
किसी भी प्रकार
से रूकावट एवं
बाधा नहीं डाले।
इस अवसर
पर एक क्रांतिकारी
विशेष रूप से
याद आते हैं।
क्योंकि जिस व्यक्ति
को ब्रिटिश सरकार
सबसे खतरनाक व्यक्ति
समझती थी उनका
नाम अरविन्द घोष
था और उनका
जन्म दिवस 15 अगस्त
1872 को था। श्रीअरविन्द
की 150वीं जयंती
का स्मरणोत्सव यथोचित
रूप से मनाने
के लिये माननीय
प्रधानमंत्री श्री
नरेन्द्र मोदी जी
की अध्यक्षता में
उच्च स्तरीय समिति
का गठन किया
गया है।
श्रीअरविन्द बहुमुखी
प्रतिभा से सम्पन्न] न
केवल वे एक
महान योगी] मन्त्रद्रष्टा] ऋषि] दार्शनिक] कवि] लेखक
थे बल्कि एक
महान देशभक्त] स्वतन्त्रता
सेनानी और क्रान्तिकारी
भी थे %&
1- उत्तरयोगी श्रीअरविन्द (Sri
Aurobindo also known as Uttaryogi)
यह
नाम श्रीअरविन्द को
तमिल के प्रसिद्ध
योगी की भविष्यवाणी
के आधार पर
दिया गया है।
दक्षिण के प्रसिद्ध
योगी नगाईजप्ता ने
यह भविष्यवाणी की
थी कि तीस
वर्ष बाद उत्तर
से एक योगी
दक्षिण में आयेगा
और यहां दक्षिण
में पूर्ण योग
का अभ्यास करेगा।
उन्होंने उस योगी
की पहचान कर
सकने के लिये
लक्षण के रूप
में तीन वचन
¼पागलपन½ कहे।
वे तीनों श्रीअरविन्द
के उनकी पत्नि
के नाम पत्रों
में पाये जाते
हैं। वे तीन
पागलपन थे 1- उनकी
समस्त योग्यता ईश्वर
की देन है
और यह योग्यता
केवल राष्ट्र के
लिये है। 2- ईश्वर
की खोज 3- भारत
को स्वतंत्र कराने
का लक्ष्य।
2- क्रांतिकारी श्रीअरविन्द (Revolutionary Ideas)
श्रीअरविन्द
मानते थे कि
भारत के पुर्ननिर्माण
यानि मुख्यतः आर्थिक] सामाजिक] राजनैतिक
या जो कुछ
और विकास की
दिशाएं हो सकती
हैं( बिना पूर्ण
स्वराज्य के सम्भव
नहीं है। श्रीअरविन्द
के अनुसार उस
समय भारत को
न तो धनी
और औद्योगिक राष्ट्र
बनने की समस्या
थी और न
ही बौद्धिक या
पूर्णतय सब प्रकार
से सभी चीजों
को जानने वाला
राष्ट्र बनने की।
बल्कि भारत को
राष्ट्र के रूप
में मौत के
मुंह में जाने
से बचाने की
थी। चुनाव राष्ट्र
के लिये जीवन
और मृत्यु के
बीच का था।
इसलिए पूर्ण स्वतंत्रता
की मांग श्रीअरविन्द
ने रखी थी।
श्रीअरविन्द भारत
देश को जड़
पदार्थ&मात्र खेत] मैदान] जंगल] पर्वत] नदियां
नहीं समझते थे।
देश को भारत
माता के रूप
में देखते थे।
श्रीअरविन्द को
अंग्रेजी हुकुमत भारत
का सबसे खतरनाक
व्यक्ति मानती थी।
श्रीअरविन्द की
^डॉक्ट्रीन आफ
पेसिव रसिस्टेन्स’पूर्ण
स्वतंत्रता प्राप्त करने
के लिये एक
महत्वपूर्ण नीति को
प्रतिपादित करती है।
जिसने भारत के
स्वतंत्रता संग्राम को
एक नई दिशा
दी थी। श्रीअरविन्द
की सशस्त्र क्रांतिकारी
की योजना ‘^भवानी
मंदिर’ में
मिलती है। श्रीअरविन्द
को वंदेमातरम् केस
में गिरफ्तारी के
अवसर पर रविन्द्रनाथ
टैगोर ने एक
कविता लिखी थी
और अलीपुर बम
काण्ड मुकदमे की
पैरवी करते हुए
सी-आर- दास
ने कहा इस
विवाद के शान्त
हो जाने के
बाद, इस संसार
से इनके चले
जाने के बहुत
बाद] उन्हें देश
भक्ति के कवि] राष्ट्रवाद
के पैगम्बर तथा
मानवता के प्रेमी
के रूप में
आदर किया जायेगा
और उनकी वाणी
न केवल भारत
में बल्कि सुदूर
सागरों तथा देशों
के पार भी
ध्वनित और प्रतिध्वनित
होती रहेगी। इसलिए
मैं कहता हूँ
कि यह व्यक्ति
न केवल इस
न्यायालय के कानून
के सामने बल्कि
इतिहास के उच्च
न्यायालय के सामने
खड़ा है।’’
3- श्रीअरविन्द का आध्यात्मिक राष्ट्रवाद (Spiritual
Nationalism)
श्रीअरविन्द
देश को सामूहिक
आत्मा के अभिव्यक्ति
के रूप में
देखते हैं जो
कि दिव्य विधान
के अनुसार नियत
कार्यों को सम्पादित
करने के लिये
आदेशित है। भारत
को आध्यात्मिकता] अमरीका
को वाणिज्य ऊर्जा] इंग्लैण्ड
को व्यवहारिक बौधिकता] फ्रांस
को स्पष्ट तार्किकता] जर्मनी
को मिमांसात्मक प्रवीणता] रूस
को भावनात्मक प्रचण्डता
आदि को मानव
जाति को कल्याण] समृद्धि
और प्रगति के
लिए विकसित करने
की आवश्यकता है।
सार यह है
कि धरती माता
विभिन्न राष्ट्रों के
रूप में स्वयं
को उत्तरोत्तर अभिव्यक्त
कर रही है।
संयुक्त राष्ट्र के
गठन को विश्व
सरकार के रूप
में उसी दिशा
में बढ़ता कदम
देखा जाना चाहिए।
4- श्रीअरविन्द की शिक्षानीति (Nation Education
Policy)
श्रीअरविन्द
की राष्ट्रीय शिक्षण
नीति समग्र व्यक्तित्व
विकास] राष्ट्रीय चिंतन
एवं वैश्विक विचार
पर आधारित हैं।
श्रीअरविन्द शिक्षानीति
के सम्बन्ध में
लिखते है कि
राष्ट्रीय शिक्षा की
मांग का जीता-जागता
भाव यह नहीं
चाहता कि हम
भास्कराचार्य के
गणित और ज्योतिष
की ओर वापिस
जाएं या नालंदा
की शिक्षा पद्धति
अपनाएं। यह उसी
तरह है जैसे
स्वदेशी की भावना
रेल या मोटर
परिवहन की जगह
रथ या बैलगाड़ी
की ओर वापिस
नही ले जाती।
यह चुनाव है
बाहर से लायी
गयी सभ्यता और
भारतीय मन और
स्वभाव की अधिक
महान संभावनाओं के
बीच वर्तमान और
अतीत के बीच
नहीं] वर्तमान और
भविष्य के बीच
पांचवी शताब्दी की
ओर वापिस जाने
की नहीं, आने
वाली शताब्दियों के
उपक्रम की मांग
है।
5- श्रीअरविन्द] स्वामी विवेकानन्द और मानव से महामानव की यात्रा (Evolutionary
Philosophy of Sri Aurobindo from Man to superman, mind to supermind)
उत्तरपाड़ा
जेल में आध्यात्मिकता
अनुभूतियां और स्वामी
विवेकानन्द के साथ
संवाद के बाद
श्रीअरविन्द पाण्डिचेरी
चले गये। जहां
रूपांतरण के लिये
पूर्ण योग का
मार्ग संसार को
दिखाया। पूर्ण योग
का उद्देश्य हैं
दिव्यजीवन] दिव्यशरीर और
दिव्यसंसार। विकास
क्रम में श्रीअरविन्द
मनुष्य को अंतिम
कृति नहीं मानते।
श्रीअरविन्द लिखते
हैं कि विकासक्रम
समाप्त नहीं हुआ
है] तर्क अंतिम
शब्द नहीं हैं
और तर्क करने
वाला पशु ईश्वर
की सर्वोच्च कृति
है। पशु से
मानव प्रकट हुआ
है। उसी प्रकार
मानव से महामानव
का आविर्भाव होगा।
यह दृष्टि श्रीअरविन्द
को समझने के
लिये बहुत महत्वपूर्ण
है। चूंकि श्रीअरविन्द
मनुष्य को एक
मध्यवर्ती प्राणी समझते
है। जबकि पश्चिम
के विचारक मनुष्य
को एक विवेकशील
प्राणी अथवा संतोषी
प्राणी समझते है।
6- मानव एकता
श्रीअरविन्द की दृष्टि में (Human Unity)
मानव
एकता मनुष्य जाति
की आदिकाल से
अभिप्सा रही हैं।
आधुनिक काल में
फ्रांसिसी क्रांति के
नीति शब्दों-लिबर्टी] इक्वालिटी
और फ्रेटरनिटी में
मानव एकता की
अभिव्यक्ति प्रकट होती
हैं। श्रीअरविन्द कहते
है कि संसार
में लिबर्टी] इक्वालिटी
और फ्रेटरनिटी स्थापित
नहीं हो पाई।
लिबर्टी के नाम
पर केपीटलिज्म] इक्वालिटी
के नाम पर
सोशलिज्म और कम्यूनिज्म
का प्रयोग मानव
जाति में देखा
है। श्रीअरविन्द कहते
है कि फ्रेटरनिटी
अर्थात् बन्धुत्व विश्व
में कहीं भी
अभी तक स्थापित
नहीं हो पाया
है। उसका कारण
है कि फ्रेटरनिटी
के लिये आवश्यकता
है अध्यात्मिक क्रांति।
अध्यात्मिक क्रांति के
लिये आवश्यक है
चेतना का रूपांतरण।
अध्यात्मिक रूपांतरण को
मूर्त रूप देने
के लिये एक
प्रयोग है ओरोविल।
ओरोविल के विचार
को संयुक्त राष्ट्र
के सभा में
चार बार अनुमोदन
किया है।
7- श्रीअरविन्द का 15 अगस्त 1947 का महत्वपूर्ण संदेश (Five dreams of Sri
Aurobindo in the message to All India Radio on 15-08-1947)
श्रीअरविन्द
का 15 अगस्त का
भाषण आज भी
प्रासंगिक है जिसमें
श्रीअरविन्द पांच
संकल्पों के बारे
में बताते है 1-
भारत विभाजन का
विरोध 2- एशिया का
उत्थान 3- संयुक्त राष्ट्र
की भूमिका 4- भारत
का विश्व को
अध्यात्मिक देन 5- विकास
क्रम की प्रक्रिया
में योग की
महत्वपूर्ण भूमिका जिसमें
भारत की अग्रणीय
भूमिका अपेक्षित होगी।
8- श्रीअरविन्द और संविधान सभा (Constituent Assembly
remembering Sri Aurobindo)
श्रीअरविन्द
के दर्शन] चिंतन
एवं साहित्य से
प्रेरणा लेकर संविधान
सभा में विश्व
में भारत की
भूमिका पर चर्चा
की गई थी।
संविधान सभा की
कार्यवाही बैठक 12 खण्डों
में उपलब्ध है।
जिनका अध्ययन करने
पर खण्ड 7] 8] 9 और 11
में श्रीअरविन्द का
उल्लेख बार&बार
मिलता है। 5 नवम्बर
1948 को भारत की
राजनीति विषय पर
श्रीअरविन्द को
याद किया जाता
है। इसी प्रकार
विश्वयुद्ध प्रथम एवं
द्वितीय के साक्षी
रहे संविधान सभा
के सदस्यों ने 6 दिसम्बर
1948 को भारत की
भूमिका तय करने
के लिये श्रीअरविन्द
को स्मरण किया
एवं श्रीअरविन्द द्वारा
वैश्विक समस्याओं के
समाधान के लिये
चेतना के रूपांतरण
को ही एक
मात्र उपाय एवं
समाधान पर विचार
किया। इसी प्रकार 16
मई 1949 को श्रीअरविन्द
को स्मरण किया
जाता है। 31 अगस्त
1949 को श्रीअरविन्द का
स्मरण किया जाता
है कि पश्चिम
भारत की ओर
वैश्विक समस्याओं के
समाधान के लिये
देख रहा है
और हमें भारत
को जिसके पास
आध्यात्मिक ज्ञान है, उस
ज्ञान को पूरे
संसार में हमें
मार्गदर्शन देना चाहिए। 25
नवम्बर 1949 को श्रीअरविन्द
के क्रांतिकारी पक्ष
को संविधान सभा
द्वारा याद किया
जाता है।
9- श्रीअरविन्द की भारत के युवा को संदेश (Expectation from
Youth)
श्रीअरविन्द
की स्वतंत्र भारत
से अपेक्षा है
कि भारत आध्यात्मिक
ज्ञान को पूर्ण
प्राप्त करे] वैश्विक
समस्याओं को चिनिह्त
करे और उसके
बाद आध्यात्मिक ज्ञान
के आधार पर
समस्याओं का समाधान
विश्व के सामने
प्रस्तुत करे। श्रीअरविन्द
भारत को विश्व
का चिकित्सक मानते
हैं। श्रीअरविन्द भारत
को विश्वगुरू के
रूप में स्वीकार
करते है। श्रीअरविन्द
भारत की सृजनात्मकता
और बौद्धिकता का
आधार आध्यात्मिकता को
बताते हैं। परन्तु
साथ ही गरीबी
को आध्यात्मिकता की
शर्त या आवश्यकता
मानने वाले सन्यासी
नहीं थे। वे
गरीबी को आध्यात्मिकता
का विरोधी तत्व
समझते थे। वे
मानते थे कि
गरीबी का होना
अन्यायपूर्ण समाज
गलत ढंग से
संगठित है।
10- श्रीअरविन्द का साहित्य
(Writings
of Sri Aurobindo)
दिव्य
जीवन- सावित्री] भारतीय
संस्कृति के आधार] गीता
प्रबंध] योग समन्वय] श्रीअरविन्द
के पत्र] मानव
चक्र] वेद रहस्य] कर्मयोगी] वंदेमातरम्] आर्य] हमारा
योग और उसके
उद्देश्य आदि।
सूर्य प्रताप
सिंह राजावत] सचिव] श्रीअरविन्द
सोसायटी] राजस्थान] मो-
9462294899
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