क्या कश्मीर को कभी न्याय मिलेगा ?

 

कश्मीर फाइल्स देश में ही नहीं वरन पूरे विश्व में इस फिल्म पर चर्चा हो रही है ​. ​ ​इस फिल्म में चर्चा भारत के उस इतिहास के बारे में हो रही है जिसके बारे में जिसके बारे में आज की पीढ़ी ने न तो सुना ने लिखा न किसी ने उसको सही तरीके से बताएं ​. ​यही कारण है कि आज का युवा और पढ़ा लिखा वर्ग इस फिल्म के बारे में चर्चा कर रहा है ​. ​कुछ लोग इस फिल्म के बारे में चर्चा इसलिए नहीं कर रहे क्योंकि उनका तर्क है कि इस फिल्म से राजनीति हो रही है ​. ​इस फिल्म से किसी एक पार्टी को फायदा और दूसरी पार्टी को नुकसान हो रहा है ​. ​इसलिए वह राजनीति में नहीं पड़ना चाहते और वह इस फिल्म के बारे में बात नहीं करना चाहते ​. ​यह एक कन्वीनियंस का मार्ग ​​जैसे उन्हें इस फिल्म में हुई घटना से कोई फर्क ही नहीं पड़ता क्योंकि यह घटना तो 30 वर्ष पहले घटी थी​. ​जैसे​ ​इस घटना का आज के दौर में कोई अर्थ ही नहीं है​. 


परंतु मैं इस फिल्म के बारे में बात करना चाहता हूं चर्चा करना चाहता हूं विश्लेषण करना चाहता हूं ​. ​क्या यह सिर्फ एक राजनीति का मुद्दा है​?​ क्या यह राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है​?​ क्या यह भारत के अभिन्न अंग कश्मीर की कहानी नहीं है ​?​जो भी घटना 19 जनवरी 1990 को घटी   क्या इसकी तैयारी के लिए कई हफ्ते महीनों या वर्षों नहीं लगे ​?​जो कुछ भी उस दिन घटा उसको संविधान की नजर से देखने पर यही नजर आता है कि वह न केवल कश्मीर राज्य की विफलता थी बल्कि दिल्ली की सरकार की भी पूरी तरह से विफलता थी ​?प्रश्न यह भी उठता है कि क्या दोनों के बीच में कोई सांठगांठ थी  ​?​कई लोग इस पर चर्चा इसलिए नहीं करना चाहते क्योंकि यह एक हिंदू और मुसलमान को आमने सामने खड़ा करती है ​. ​परंतु क्या यह सच नहीं है जिस देश का नीति वाक्य ही सत्यमेव जयते हो उस देश में संवाद क्यों नहीं हो सकता ​. ​मतों में भिन्नता के कारण ही यहां ​षड दर्शन ​  है​. ​ जिसका आधार है संवाद​. ​ संवाद इसलिए क्योंकि  हिंदू मुस्लिम एकता के लिए इस प्रकार का संवाद अत्यंत उपयोगी और अनिवार्य है​. ​ झूठ के आधार पर अमन चैन का वातावरण का निर्माण नहीं किया जा सकता, सत्य के आधार पर ही भविष्य का निर्माण किया जा सकता है ​. ​यह संवाद बहुत रूप में उपयोगी सिद्ध हो सकता है ​. ​जरूरत इस बात की है कि इसे राजनीति के चश्मे से ना देखा जाए​. ​ कश्मीरी पंडितों का नरसंहार क्यों किया गया​?​ ​जिनोसाइड का उद्देश्य क्या था​?​ कश्मीर को इस्लामिक स्टेट बनाने का उद्देश्य ही कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का कारण बना ​.​हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय जिसमें हिजाब को इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं बनाया पर कुछ लोगों द्वारा न्यायाधीश को जान से मारने की धमकी दे डाली क्या यह  कश्मीर के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के हत्या को याद नहीं दिलाता?
संविधान सभा ने जिस भारतीय  संविधान पर हस्ताक्षर किये उसमे भारत विभाजन के दंगो का चित्र मिलता है. संविधान लागू होने के 40 वर्षों बाद कश्मीर में कश्मीर पंडितों का नरसंहार - genocide विभाजन की  विभीषिका की याद दिलाता है और कश्मीर पंडितों को न्याय नहीं मिलने के लिए भारत  राष्ट्र से प्रश्न कर रहा है. कश्मीर की विभीषिका  भारत के historical process of assimilation की विफलता का प्रमाण है। संविधान सभा में historical process of assimilation की चर्चा आज भी उपयोगी और आवश्यक है. historical process of assimilation ही भारत को उस दिशा में ले जा सकता है जिसकी अभीप्सा संविधान सभा ने की थी। 
 मेरा प्रश्न एक ही है क्या कश्मीर को  कभी न्याय मिलेगा ?   

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