3 दिसम्बर - एवोकेट्स डे

26 नवम्बर 1949 को संविधान को अंगीकार
करने के प्रस्ताव में डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद एक
प्रकार से पूरे संविधान पर प्रकाश डालते और अंत में दो विषयों पर दुख प्रकट करते
है एक कि विधायिका के लिए शैक्षिक योग्यता का निर्धारण नहीं कर पाए व दूसरा कि
भारतीय भाषा हिन्दी में संविधान के प्रारूप पर चर्चा नहीं हो सकी। अपने वक्तव्य
में डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद ने महिलाओ को आरक्षण देने की
बात भी रखी थी।
भारत में सेकुलरिज्म विषय पर सारगर्भित चर्चा संविधान सभा में प्रारूप संविधान में शपथ में ईश्वर को हटाने पर
हुई थी। इस बहस के बाद संविधान में वर्णित
शपथ प्रारूप में ईश्वर को जोड़ा गया था. बहस में यह बात सामने आयी की भारत में सेकुलरिज्म के नाम
पर ईश्वर का बहिष्कार नहीं किया जा सकता।
ईश्वर के नाम पर हिंसा - कत्ल -खून बहाने के लिए सनातन धर्म की कोई भूमिका नहीं रही
मूल संविधान में वैदिक काल
के गुरूकुल का दृश्य रामायण से श्रीराम व माता सीता और लक्ष्मण जी के वनवास से घर वापस
आने का दृश्य, श्री कृष्ण द्वारा अर्जून को कुरूक्षेत्र में दिए गए गीता के उपदेश के दृश्यों
को दर्शाया गया। इसी प्रकार गौतम बुद्ध व महावीर के जीवन, सम्राट अशोक व विक्रमादित्य
के सभागार के दृश्य मूल संविधान में मिलते है। इसके अलावा अकबर, शिवाजी, गुरूगोबिन्द सिंह, टीपू सुल्तान और रानी
लक्ष्मीबाई के चित्र भी मूल संविधान में है। स्वतंत्रता संग्राम के दृश्य को
महात्मा गांधी की दाण्डी मार्च से दर्शाया है। इसी प्रकार नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
का चित्र मूल संविधान में राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों का प्रतिनिधित्व करता है।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा भारत माता को आजाद कराते हुए के प्रयास का चित्रण
मूल संविधान में मिलता है।
मूल संविधान में भारतीय
सभ्यता के चित्रण को देखने पर भारतीय चिंतन का स्पष्ट रूप में दर्शन होता है. संविधान सभा द्वारा भारतीय राष्ट्रवाद का भारत माता के रूप में चित्रण, श्री अरविन्द का धर्मज राष्ट्रवाद व आध्यात्मिक राष्ट्रवाद, स्वामी विवेकानन्द का संकल्प रू विश्वगुरू की भूमिका में भारत, डॉ. अम्बेड़कर की संविधानिक नैतिकता, हिंसा और अहिंसा पर समग्रता में विचार, स्वराज और सुराज के सिद्धांत,
वैदिककाल से 20वीं सदी तक सनातन परम्परा, भारतीय सभ्यता के आधारभूत ढांचे की समझ.
3 दिसम्बर को एवोकेट्स डे पर सभी विधि से जुडे़ लोगो के लिए आत्मचिंतन, आत्म मंयन का दिवस है कि भारतीय की एकता अखण्डता बनाने में वकीलों की भूमिका अग्रणीय रहीं है। अतः भावी पीढ़ी इस परम्परा को समझने और देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार यह पावन परम्परा निरंतर बनी रहे।
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