3 दिसम्बर - एवोकेट्स डे

 

 3 दिसम्बर 2019 डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद ( भारत रत्न -1962 ) के  जन्मदिवस को एवोकेट्स डे के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि वे अपने समय में प्रतिष्ठित वकील थे। देश के लिए अपनी प्रेक्टिस को छोड स्वतंत्रता संग्राम के लिए कूद पडे। उनके इस त्याग, बलिदान और देश सेवा को एवोकेट्स डे के दिन याद किया जाता है।उनकी बहुमुखी व्यक्तित्व के कारण एवोकेट्स उन्हें अपना आदर्श भी मानते है कि जब भी जरूरत हो तो हर एडवोकेट् राष्ट्रधर्म को सर्वोपरी रखेगा न्यायालय के अन्दर और बाहर .डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद जी के  इस गुण पर दृष्टि डालने पर श्री अरविन्द की याद की आती है जहाँ वे अपने तीन पागल पनों में से एक पागलपन के बारे में लिखते है कि उनकी  प्रतिभा ईश्वर की देन हैं और वे प्रतिभा को देश की सेवा के लिए समर्पित करते है। संविधान सभा में डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद ने सभापति की भूमिका में आम सहमति के सिद्धांत को प्राथमिकता दी। हिन्दी देवनागरी अंको पर हुई बहस व वंदेमातरम् और जन गण मन पर निर्णय लेने पर डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद ने आमसहमति बना कर सभा को राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की सर्वोपरिता के उदाहरण प्रस्तुत किए।

26 नवम्बर 1949 को संविधान को अंगीकार करने के प्रस्ताव में डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद एक प्रकार से पूरे संविधान पर प्रकाश डालते और अंत में दो विषयों पर दुख प्रकट करते है एक कि विधायिका के लिए शैक्षिक योग्यता का निर्धारण नहीं कर पाए व दूसरा कि भारतीय भाषा हिन्दी में संविधान के प्रारूप पर चर्चा नहीं हो सकी। अपने वक्तव्य में डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद ने महिलाओ को आरक्षण देने की बात भी रखी थी।

भारत में सेकुलरिज्म विषय पर सारगर्भित चर्चा संविधान सभा में  प्रारूप संविधान में शपथ में ईश्वर को हटाने पर हुई थी।  इस बहस के बाद संविधान में वर्णित शपथ प्रारूप में ईश्वर को जोड़ा गया था. बहस में यह बात सामने आयी की भारत में सेकुलरिज्म के नाम पर ईश्वर का बहिष्कार नहीं किया जा सकता।  ईश्वर के नाम पर हिंसा - कत्ल -खून बहाने के लिए सनातन धर्म की कोई भूमिका नहीं रही

   जब  पंडित  नेहरू ने  डॉ राजेंद्र प्रसाद  को सलाह दी  कि  सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में न जाएं  इसके दुर्भाग्यवश कई मतलब निकाले जाएंगे. डॉ राजेंद्र प्रसाद  ने पंडित  नेहरू की सलाह नहीं मानी और वे सोमनाथ गए. डॉ राजेंद्र प्रसाद  ने सोमनाथ में कहा  एक हिंदू हूं लेकिन सारे धर्मों का आदर करता हूं कई मौकों पर चर्च मस्जिद दरगाह और गुरुद्वारा भी जाता रहता हूं

 इसी प्रकार संविधान को हस्तलिखित करने व इसमें भारतीय सभ्यता और संस्कृति के चित्रण के लिए के लिए नंदलाल बोस को जिम्मेदारी की गई। संयोग से आचार्य नंदलाल बोस का जन्मदिवस भी 3 दिसम्बर  है। डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद चाहते थे कि मूल संविधान  में   पूरी पेज की मार्जिन  पर चित्रण हो परन्तु समय की कमी के कारण भारतीय इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के मूल भाव को प्रकट करने का प्रयास मूल संविधान में नंदलाल बोस और उनके शिष्यों द्वारा किया गया।

मूल संविधान में वैदिक काल के गुरूकुल का दृश्य रामायण से श्रीराम व माता सीता और लक्ष्मण जी के वनवास से घर वापस आने का दृश्य, श्री कृष्ण द्वारा अर्जून को कुरूक्षेत्र में दिए गए गीता के उपदेश के दृश्यों को दर्शाया गया। इसी प्रकार गौतम बुद्ध व महावीर के जीवन, सम्राट अशोक व विक्रमादित्य के सभागार के दृश्य मूल संविधान में मिलते है। इसके अलावा अकबर, शिवाजी, गुरूगोबिन्द सिंह, टीपू सुल्तान और रानी लक्ष्मीबाई के चित्र भी मूल संविधान में है। स्वतंत्रता संग्राम के दृश्य को महात्मा गांधी की दाण्डी मार्च से दर्शाया है। इसी प्रकार नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का चित्र मूल संविधान में राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों का प्रतिनिधित्व करता है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा भारत माता को आजाद कराते हुए के प्रयास का चित्रण मूल संविधान में मिलता है। 

 मूल संविधान में भारतीय सभ्यता के चित्रण को देखने पर भारतीय चिंतन का स्पष्ट रूप में दर्शन होता है.    संविधान सभा द्वारा भारतीय राष्ट्रवाद का भारत माता के रूप में चित्रण,    श्री अरविन्द का धर्मज राष्ट्रवाद व आध्यात्मिक राष्ट्रवाद,    स्वामी विवेकानन्द का संकल्प रू विश्वगुरू की भूमिका में भारत,    डॉ. अम्बेड़कर की संविधानिक नैतिकता,    हिंसा और अहिंसा पर समग्रता में विचार,   स्वराज और सुराज के सिद्धांत,   वैदिककाल से 20वीं सदी तक सनातन परम्परा,   भारतीय सभ्यता के आधारभूत ढांचे की समझ.

 3 दिसम्बर को एवोकेट्स डे पर सभी विधि से जुडे़ लोगो के लिए आत्मचिंतन, आत्म मंयन का दिवस है कि भारतीय की एकता  अखण्डता बनाने में वकीलों की भूमिका अग्रणीय रहीं है। अतः भावी  पीढ़ी इस परम्परा को समझने और देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार यह  पावन परम्परा निरंतर बनी रहे।




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