संविधान दिवस 2020




संविधान दिवस भारत में 26 नवम्बर को मनाया जाता है। इस दिन संविधान सभा द्वारा पारित संविधान को अंगीकार किया था। संविधान सभा को मनाने के पीछे यह उद्देश्य है कि 7 दशक बाद भारत के लोग सांविधानिक नैतिकता को समझ सके। उन्हें इस बात का भान हो कि संविधान को बनाने में 299 लोगों की भूमिका थी। सीधे रूप से 2 दर्जन समितियों/उपसमितियों द्वारा विभिन्न विषयों पर रिपोर्ट पेश की गई थी। उनमें से प्रमुख निम्न प्रकार है।

       संविधान सभा की समितियां और उनके अध्यक्ष

1

1नियम समिति

2संचालन समिति

3वित्त और कर्मचारी समिति

4राष्ट्रीय ध्वज के लिए तदर्थ समिति

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

भारत रत्न से  सम्मानित  1962

 


2

1राज्य समिति

2संघ शक्ति समिति

3संघ संविधान समिति

जवाहरलाल नेहरू

भारत रत्न से  सम्मानित 1955 


3

1प्रांतीय संविधान समिति

2 मूल अधिकार, अल्पसंख्यक अधिकार आदि की सलाहकार समिति

 

वल्लभ भाई पटेल

भारत रत्न से  सम्मानित 1991


4

प्रारूपण समिति

डॉ. भीमराव अम्बेडकर

भारत रत्न से  सम्मानित 1990


5

परिचय पत्र समिति

अल्लादि कृष्णस्वामी अइयर


6

कार्य निर्धारण समिति 

कन्हैयालाल माणिकलाल मुन्शी 

 

 

 


7

1मुख्य आयुक्त प्रांत समिति

2आवास समिति

 

डॉ. पट्टाभि सीतारामय्या


8

संविधान सभा के कृत्यों की समिति

जी.वी. मावलनकर


9

 

 

 

मूल अधिकार, अल्पसंख्यक अधिकार आदि की सलाहकार समिति इस सलाहकार समिति की चार उपसमितियां थीं

अल्पसंख्यक उपसमिति

एस.सी. मुखर्जी


मूल अधिकार उपसमिति

जे. बी. कृपलानी


पूर्वोत्तर सीमा जनजाति क्षेत्र और असम आदि की उप समिति

गोपीनाथ बरदोलाई

भारत रत्न से  सम्मानित 1999


अपवर्जित और भागतः अपवर्जित क्षेत्र (असम के क्षेत्रों को छोड़कर) उपसमिति

जे.जे. निकोल्स राय


10

संघ के संविधान के वित्तीय उपबंधों के लिए विशेषज्ञ समिति

नलिनीरंजन सरकार

 

11

भाषावार प्रांत आयोग

एस.के. दर

12

उच्चतम न्यायालय के लिए तदर्थ समिति

एस. वरदाचारी

इस दिन यह भी युवाओं को बताया जाता है कि हर युग, हर पीढ़ी को एक जिम्मेदारी का भार उठाना पड़ता है जिससे कि संविधान को मान, मर्यादा, प्रतिष्ठा और स्वीकार्यता सभी वर्गों, दलों और पंथों में बना रहे। संविधान सभा की चर्चाओं/वाद-विवाद के अध्ययन पर कुछ बाते स्पष्ट होती है, जैसे महिलाओं को समानता का अधिकार, सभी को मतदान का अधिकार, छुआ-छुत पर प्रतिबंध जैसे क्रांतिकारी निर्णय संविधान सभा द्वारा लिए गए तो कुछ विषय भविष्य में आने वाली पीढ़ी पर भी छोड़ दिए थे, जैसे क्या विद्यालयों में वेद, गीता को पढ़ाना चाहिए। इस विषय पर न्यायपालिका से अपेक्षा की गई कि वो समय पर इसका निर्णय ले। यह डॉ. अम्बेड़कर का मत था। 
इसी प्रकार वंदेमातरम् पर 24 जनवरी 1950 का निर्णय कि जन-गण-मन और वंदेमातरम् को समान सम्मान और स्थान मिले, इस दिशा में भारत गणराज्य को कदम उठाने चाहिए। वंदेमातरम् पर किसी भी प्रकार की राजनीति या तुष्टीकरण ना हो ऐसी संविधान सभा की मंशा थी। समान सिविल संहिता-यूनिफार्म सिविल कोड पर भी संसद को कानून बनाने से पहले लोगो को शिक्षित कर सही वातावरण का निर्माण बनाना चाहिए। 

भाषा और शिक्षा के संबंध में सात दशक बाद भी हिंदी को राजकीय भाषा बने रहने में भी कठिनाई हो रही है। उच्च न्यायालयों में मातृभाषा या राजभाषा में न्याय मिलना दुर्लभ है जबकि संविधान के प्रावधान इसमें बाधा नहीं परन्तु न्यायालयों से जुड़े लोगों एवं विधि की शिक्षा का माध्यम एक रूकावट है। शिक्षा का अधिकार तो मिल गया परन्तु अधिनियम के प्रावधानों में सांविधानिक नैतिकता का रंग फीका ही नजर आता है। सात दशक में आरक्षण नीति में कई परिवर्तन देखने को मिले, अनुसूचित जाति, जनजाति के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग को जोड़ा गया, पदौन्नति में भी लाभ का अवसर बढ़ाया, बैकलोग जैसा नियम स्थापित किया, 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण ना हो ऐसा न्यायालय ने हस्तक्षेप किया। ईडब्ल्यूएस-आर्थिक कमजोर वर्ग को भी आरक्षण का लाभ मिलने लगा है। इस विषय पर मंथन की आवश्यकता है कि आरक्षण नीति से जातीवाद, क्षेत्रवाद को बढ़ावा ना मिले। 

संविधान सभा के वाद-विवाद को पढ़ने पर इसे पांच भागों में बांटकर समझा जा सकता है।

भारत के संविधान को संविधान सभा के वाद-विवाद के माध्यम से समझे

 

 

हम भारत के लोग - वर्तमान पीढ़ी द्वारा लिए जाने वाले निर्णय

क्रसं.

संविधान सभा द्वारा निर्णय लिया जा चुका है।

विषय जिन पर संसद को निर्णय लेना है।

विषय जिन पर वैकल्पिक समाधान की आवश्यकता है।

विषय जिनका क्रियान्वयन अपेक्षित नहीं हुआ है।

विषय जिन पर न्याय पालिका को निर्णय लेना है।

 राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सर्वोपरी रखते हुए राजनीतिक , सामाजिक और आर्थिक क्रांति के लिए सर्वसम्मति और सामंजस्य के सिद्धांत के आधार पर भारत के संविधान का निर्माण किया गया। संविधान सभा के वाद विवाद (Constituent Assembly   Debates)   के अध्यन करने पर स्पष्ट दिखता है.

सूर्य प्रताप सिंह राजावत

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