भारत की संसार को भेंट- स्वामी विवेकानंद
(बरूकलीन मानक संगठन, फरवरी 27, 1895)
हिन्दु भिक्षु स्वामी विवेकानंद, ने बरूकलीन एथिकल एसोसिएशन के तत्वावधान में सोमवार की रात को विशाल जनसमूह के सामने 'लोंग आइलैंड हिस्टोरिकल सोसायटी के हाल में एक भाषण दिया । इस भाषण का विषय था," भारत की संसार को भेंट "।
उन्होंने अपने देश की आश्चर्यजनक सुन्दरता का वर्णन किया । उन्होंने कहा यह वह जगह है जहाँ से नैतिकता, कला, विज्ञान एवं साहित्य की प्रारंभिक शुरूवात हुई। कई महान यात्रियों ने भारत धरती के पुत्रों की ईमानदारी और पुत्रियों के गुणों की प्रशंसा में गीत गाये हैं । तब उन्होंने शीघ्र ही विस्तार से यह बतलाया कि भारत ने विश्व को क्या दिया ।
धर्म के उपर बोलते हुए उन्होंने कहा कि ईसाई धर्म के मूल में जायें तो उसकी मूल शिक्षा की भावना भगवान् बुध की शिक्षा में मिलती है । उन्होंने एसे कई उदाहरण बतलाये जो कि योरोपियन और अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कहे थे और उनमें ईसाई धर्म और भगवान् बुध की शिक्षा में समानता पाई गयी। ईसा मसीह का जन्म, उनका संसार से अलग रहना, उनके शिष्य और उनकी नैतिकता की शिक्षा वैसी ही हैं, जैसी कि भगवान् बुध की थी और बुध ईसा मसीह से सैकड़ों साल पहले रह चुके थे ।
एक दर्शक ने स्वामी विवेकानंद से पूछा कि क्या यह एक संयोग था कि भगवान् बुध की शिक्षा ईसा मसीह की शिक्षा का पूर्वाभास थी ? ज्यादातर आप जैसे लोग एसा ही समझते हैं परन्तु कई साहसी लोगों ने यह कहा है कि ईसाई की शिक्षा का जन्म भगवान् बुध की शिक्षा में ही निहित है, जैसा कि प्रारम्भ में ही यह अफवाह रही कि ईसाई धर्म की शिक्षा का जन्म भगवान् बुध की शिक्षा से समानता बहुत अधिक है ।
मोनेकियन के अनुसार भगवान् बुध की शिक्षा का प्रभाव सारे संसार में व्यापक स्तर पर है। लेकिन एसे साक्ष्य उपलब्ध हैं जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ईसाई की शिक्षा का जन्म भगवान् बुध की शिक्षा में से ही निकलता है । ईसा से 300 वर्ष पूर्व राजा अशोक के शासन काल में पाये गये शिलालेखों में इसके साक्ष्य मौजूद हैं । सम्राट अशोक ने ग्रीस के राजाओं से इन ग्रंथो का आदान-प्रदान किया तथा ग्रीस के धर्म प्रचारकों ने उस जगह प्रचार किया जहाँ आज सैकडों साल पश्चात ईसाई धर्म ने बुध की शिक्षा का प्रचार किया । यह भी बताया गया है कि क्यों ईसाई धर्म ने हमारे त्रिमूर्ति के सिद्धांत को, भगवान् का अवतार, हमारी नैतिकता को अपनाया । इसके अलावा जिस तरह से हमारे मंदिरों में आरती होती है, लगभग ऐसा ही तरीका कैथोलिक गिरजाघरों में अपनाया जाता है।इस तरह से बुध की शिक्षा इतने सालों से आपके सामने रही , इस प्रकार आप स्वयं ही अपने प्रशन पर निर्णय ले सकते हैं । हम हिन्दू इस बात पर भी सहमत हो सकते हैं कि आपका धर्म हमारे धर्म से पहले है, यद्यपि आप लोगों ने जब सोचा, हमारा धर्म उससे भी 300 साल पुराना है ।
इसी तरह से विज्ञान में भी हम अच्छे रहे हैं । भारत ने पुरातात्विक प्रारंभिक वैज्ञानिक चिकित्सक दिये हैं । सर विलियम हन्टर के अनुसार भारत ने आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में भी आधुनिक रसायन शास्त्र की खोज एवम् शिक्षा द्वारा योगदान दिया है तथा यह भी बताया गया है कि किस तरह से विकृत दिखने वाले कान और नाक को अच्छी तरह से रखा जा सकता है ।
यही नहीं बहुत कुछ गणित के क्षेत्र में बीजगणितीय, रेखागणित एवम् ज्योतिष विज्ञान में अपना योगदान दिया है । आधुनिक विज्ञान और मिश्रित गणित, इन सब की खोज भारत ने की है । यहां तक की दस की संख्या का ज्ञान भी भारत ने विश्व को दिया है । आधुनिक सभ्यता की आधारशिला की नींव भी भारत ने विश्व को दी है और यह सब संस्कृत में लिखा हुआ है ।
जर्मनी के दार्शनिक शोपुन्यहर के अनुसार दर्शनशास्त्र में भी भारत की विश्व में मुख्य भूमिका रही है । संगीत में संकेत पद्धति की देन भी भारत है । आधारभूत ध्वनि एवम् मधुर लय का उपयोग ईसा से 350 वर्ष पूर्व किया जाता था । जबकि योरोप में इसका प्रभाव 11 वीं शताब्दी में आया। भाषा शास्त्र में संस्कृत भाषा को योरोप की सभी भाषाओं की जननी माना जाता है, जिसको आज निरर्थक भाषा माना जाता है ।
साहित्य के क्षेत्र में हमारे महाकाव्य, कविताएं और नाटक इत्यादि किसी भी अन्य भाषाओं से उतम माना जाता है । हमारे नाटक 'शकुन्तला' का सारांश जर्मनी के महान कवि ने लिखा एवम् इसका नाम "Heaven and Earth United " रखा । इसके अलावा भारत ने एओस्प की कहानियां दी और यह कहानियां एओस्प (Aesop's Fables) द्वारा हमारी संस्कृत की एक किताब हे चुराई गईथी । अरेबियन नाइट्स, सिंडरेला तथा Bean Stalks जैसी कहानियां भी भारत की देन है । उत्पादन के क्षेत्र में कपास और रंगों का उत्पादन सबसे पहले भारत में हुआ। आभूषणों में भी सबसे पहले काम भारत में हुआ था । अंत में शतरंज, ताश व पासा (dice) की खोज भारत ने की है । भारत की क्षैष्ठता हर क्षेत्र में रही है तथा योरोप के भूखे लोगों की खोज एवम् अमेरिका की खोज में परोक्ष रूप से भारत का भी योगदान रहा है । परन्तु दुनिया ने बदले में भारत को श्राप और घृणा के अलावा कुछ भी नहीं दिया है । दुनिया ने अपने ही बच्चों के खून से खेला और भारत के बच्चों को गरीबी और गुलामी का शिकार बनाया है और अब यह प्रचार किया जा रहा है कि हिन्दू धर्म दूसरे धर्मों के विनाश करने से बढता है । परन्तु भारत न तो इस बात से भयभीत है और वह किसी से दया की भीख नहीं मांग रहा है । हमारा एक ही कसूर है कि हम जीतने के लिए किसी से लड़ाई नहीं करते हैं पर हमेशा इस बात में विश्वास करते हैं कि सत्य अनंतकाल तक हमेशा रहता है । भारत का दुनिया को एक संदेश है और वह है: "आशीर्वाद " । भारत हमेशा बुराई के बदले अच्छाई देता है और क्षैष्ठ विचार ही हमेशा विश्व के सामने रखता है ।
अंत में भारत का यह संदेश है कि शांति, अच्छाई, धैर्य एवम् नम्रता की जीत होती है । कहाँ है वह ग्रीस जिसका कभी एक छत्र राज पृथ्वी पर हुआ करता था ? कहाँ है, वो रोम के निवासी जिनसे कभी विश्व कांपता था ? वो अरब कहाँ है जो 50 वर्षों तक अटलांटिक महासागर से लेकर प्रशांत महासागर तक अपने झंडे लिए घूमते थे । कहाँ है स्पैनिशवासी जो लाखों हत्याओं के दोषी हैं ? ये दोनों जातियां अब लुप्त होने के कगार पर हैं । लेकिन इनके बच्चों की नैतिकता को देखिये और यह पैदावार (जाति) कभी खत्म नहीं होगी । साथ ही अभी इनको अच्छा समय देखना है ।
अपने भाषण के अंत में, जिसको बहुत ही सहारा गया, स्वामी विवेकानंद ने भारत के रीति रिवाजों पर पूछे गए सवालों का जवाब दिया । उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कल के (फरवरी 25) अखबार Standard Union में छपी खबर कि भारत में विधवाओं के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है, को गलत बतलाया । भारत का कानून लडकियों को शादी के पहले उनकी जायदाद को पूरी सुरक्षा देता है और विधवाओं को और कोई उतराधारी नहीं होने पर उनके पति के जायदाद पर पूरा अधिकार देता है । विधवाएं भारत में दूसरा विवाह इसलिए नहीं करती हैं कयोंकि यहाँ पुरुषों की कमी है । स्वामी विवेकानंद ने यह भी कहा है कि अब सती प्रथा समाप्त हो गई है। उन्होंनें कहा कि खुद का विनाष करने वाली कट्टर बाजीगिरी अब खत्म हो गई है । स्वामी विवेकानंद ने आगे कहा कि इस संबंध में सर विलियम हन्टर की किताब History of Indian Empire को पढें ।
हिंदी में अनुवाद के लिए के लिए श्रीमान मोती लाल जी का आभार
It is fine. Thanks a lot !
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