नई शिक्षा नीति 2020 - माध्यमिक शिक्षा


  नई शिक्षा नीति 2020 - माध्यमिक शिक्षा । नयी  शिक्षा नीति  ने शिक्षा को  चार भागों में बांटा है- पहला फाउंडेशन, दूसरा  प्रिप्रेटरी  तीसरा मिडिल और फिर सेकेंडरी। वैसे तो सभी चरण शिक्षा के लिए बड़े महत्वपूर्ण हैं परंतु माध्यमिक शिक्षा इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है  क्योंकि माध्यमिक से पूर्व तो एक तरह की तैयारी होती है।  माध्यमिक के बाद माध्यमिक एक नींव  की तरह काम करती है. जिसके ऊपर आगे की मंजिल तैयार होती है. इसलिए माध्यमिक का बड़ा महत्व है। विद्यालय  शिक्षा के बारे में नई शिक्षा नीति में जब हम पढ़ते हैं तो उसमें कुछ विशेषण हैं जो कि अपेक्षित हैं - सर्वांगीणता, समग्रता, आनंदमयी  खोजमयी , इक्विटेबल और इंक्लूसिव। माध्यमिक शिक्षा में अपेक्षा है कि कुल  मूलभूत बातें हमारी शिक्षा पाठ्यक्रम में निहित हो जिससे कि भारतीय संस्कृति ,सभ्यता और उसकी  इतिहास के बारे में हर विद्यार्थी खोजी  बने।

 परंतु उस खोज की बुनियाद माध्यमिक शिक्षा में ही तैयार हो जाए- जैसे कि तिरंगे के बारे में जानकारी केसरिया रंग स्पष्ट रूप से बताएं जाए कि  आध्यात्मिकता का प्रतीक है. बीच में जो चक्र है वह धर्म चक्र है. सफेद रंग है वह नैतिकता को बताता है और हरा समृद्धि के लिए है। यही परिभाषा एस राधाकृष्णन जी  ने संविधान सभा में बताई थी. “सत्यमेव जयते“ जो भारत देश का राष्ट्रीय नीति वाक्य है इसे स्पष्ट रूप से बच्चों को बताएं जिससे आगे बढ़कर वे समझ सके कि सत्य बहुत व्यापक होता  है.  सत्य की अभिव्यक्ति अनेक रूपों में होती है। सत्य को अलग अलग बुद्धि जन लोग अलग अलग नाम से पुकारते हैं। यही भाषा भारत के पंथनिरपेक्षता - सेक्यूलरिम  की नीव बनेगी। 

 इसी प्रकार हमारे सर्वोच्च न्यायालय का नीति वाक्य “यतो धर्मस्ततो जय“ की जानकारी भी होनी चाहिए जिससे कि हर विद्यार्थी यह समझ सके कि धर्म क्या है? और धर्म के रास्ते पर चलने वाले की ही जीत होती है. अतः धर्म ,न्याय और जीत  कोई अलग अलग नहीं है. बल्कि इन सब में एक दूसरे पर निर्भरता समझ में आनी चाहिए। इसी के साथ धर्म पर जब भी चर्चा हो तो प्रोफेसर पी  वी  काणे  के बारे में भी विद्या विद्यार्थियों को पता होना चाहिए।धर्म शास्त्र का इतिहास  प्रो  काणे   ने  लिखा था। जिसके लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

योग के विषय में  प्रामाणिक , सरल,  और पारम्परिक वर्गीकरण का  ज्ञान माध्यमिक शिक्षा का अभिन्न भाग हो. संविधान सभा में भी यह प्रश्न  उठा था तब  यही कहा था कि  मानव  विकास के आगामी विकास  के चरण में भारत की अहम भूमिका होगी और उसका आधार योग और आध्यात्मिक ज्ञान बताया था।  सारा जीवन ही योग है - श्री अरविन्द , कर्मसु योगकौशलम् अर्थात् कर्मों में योग ही कुशलता है - गीता  ,समत्वं योग उच्यते- गीता    आदि विषयों पर जून माह के अतिरिक्त  भी अनिवार्य रूप से निबंध लेखन एवं योग आसान अभ्यास दिनचर्या का भाग हो। 

 राजभाषा -राष्ट्रभाषा हिंदी के बारे में सभी को यह स्पष्ट हो कि संविधान सभा में राजभाषा हिंदी पर निर्णय लेने में दक्षिण भारतीयों की बहुत बड़ी भूमिका थी उन्होंने  हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया और मात्र मात्र 15 वर्ष का समय मांगा था इसे सीखने के लिए।  थोड़ा सा विवाद तो मात्र अंकों को लेकर था।  इसी प्रकार संविधान के बारे में यह स्पष्ट हो  कि 24 जनवरी 1950 को जब माननीय संविधान सभा के सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे उस समय दो संविधान उनके सामने प्रस्तुत किए गए थे एक था हिंदी में और दूसरा अंग्रेजी में इन दोनों पर ही माननीय सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे. 

24 जनवरी 1950 को ही संविधान सभा के सभापति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने जन गण मन और वंदे मातरम पर भी  अपना मत स्पष्ट किया।  दोनों को समान सम्मान और स्थान दिया। इसी प्रकार भारत के नक्शे के बारे में भी यह सभी को स्पष्ट हो कि किस प्रकार बंकिमचंद्र ने भारत को एक भारत माता के रूप में माना और उसी को और ज्यादा परिभाषित किया  था श्री अरविंद ने और आगे चलकर भारत माता का  उल्लेख नंदलाल बोस अपने चित्र के माध्यम से संविधान में भी करते है.  हमें यह भी स्पष्ट रूप से सबके सामने रखना होगा कि सर्वोच्च न्यायालय के सामने भी “भारत माता“ की मूर्ति लगी हुई है यह भी आवश्यक है कि हर विद्यार्थी यह स्पष्ट रूप से समझे कि हमारी भारतीय संस्कृति सभ्यता का चित्रण जो कि वैदिक काल से आरंभ होता है जिसमें वैदिक काल का गुरुकुल , रामायण , महाभारत , भगवान महावीर का चित्र गौतम बुध का चित्रण है।  इसके साथ ही  अलग-अलग काल खंड के चित्रों से हमारा संविधान सजा हुआ है जिसके अंदर गुरु गोविंद सिंह , छत्रपति शिवाजी ,महाराज गंगा का अवतरण के लिए भगीरथ को तपस्या करते हुए दिखाया है और अंत में गांधीजी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भी दर्शाया है। भारत की भौगोलिक सीमाओं के लिए हिमालय, हिंद महासागर और रेगिस्तान का चित्रण  संविधान में मिलता है।  हम सबको मालूम है कि संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर अंबेडकर जी थे परंतु संविधान में 22  भाग में बंटा  है    संविधान में अलग-अलग विषयों पर भी कई समितियां बनी थी  जिसकी जानकारी भी विद्यार्थियों को सही समय और सही उम्र में मिलती मिल जानी चाहिए। संविधान सभा में सभी ने स्वीकार किया कि आध्यात्मिक विरासत के बारे में गांधीजी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विचार बहुत महत्वपूर्ण है 

आर्य की सही परिभाषा जैसी श्री अरबिंद बताते हैं  उसके बारे में  प्राथमिक शिक्षा में स्पष्ट रूप से उल्लेखित होना चाहिए। स्वधर्म और स्वराज के सिद्धांत को शिवाजी और गुरू गोविन्द सिंह जी ने अपने जीवन का आधार बना मुगल साम्राज्य के विरूद्ध शंखनाद किया था वीर सावरकर की पुस्तक में लिखा है कि इसी सिद्धांत से भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 प्रेरित था 

स्वधर्म और स्वराज के लिए भगत सिंह) राजगुरू और सुखदेव ने सहर्ष फांसी की सजा स्वीकार की। महात्मा गांधी ने इस विषय पर हिन्द स्वराज नाम की पुस्तक में अपने विचार रखें। श्री अरविन्द ने बंगाल विभाजन के विरोध के लिए स्वराज एवं स्वदेशी का नारा दिया। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस स्वधर्म और स्वराज प्राप्ति के लिए भारत से बाहर रहकर भारत को आजाद कराने के लिए संघर्षरत थे। 

मेरा सुझाव है की कुछ मौलिक विचारो के बीज, तथ्य , परिभाषा और सिद्धांत माध्यमिक स्तर पर ही पाठ्यक्रम का भाग हो. 


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