संविधान, संविधानिक संस्थाएं ,संवैधानिक नैतिकता और न्यायपालिका की अवमानना 

   अवमानना के दोषी पाए गए हैं अधिवक्ता प्रशांत भूषण।  प्रशांत भूषण माननीय उच्चतम  न्यायालय में  दशकों का अनुभव है।  यह पहली बार नहीं है कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने किसी को अवमानना  मामले में सुनवाई का मौका दिया है.   उच्चतम  न्यायालय में अवमानना याचिका की सुनवाई आम बात है। परंतु यह मामला विशेष इसलिए बन गया है क्योंकि इसमें अवमानना के लिए जिन को दोषी ठहराया गया है स्वयं  माननीय न्यायालय में प्रैक्टिस करते हैं। माननीय न्यायालय का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि प्रशांत भूषण एक वकील हैं। इस  प्रकार का विरोध भारत गणराज्य के संविधानिक नैतिकता के सिद्धांत के विपरीत हैं। रिव्यू पिटिशन का स्वागत किया जा सकता है। परंतु माननीय न्यायालय का विरोध सैद्धांतिक रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता।  जो वकील  इसका विरोध नहीं कर रहे हैं उनका तर्क ज्यादा युक्ति युक्त है। विरोध नहीं करने का कारण प्रथम तो यह है कि यह फैसला बार काउंसिल का नहीं है अगर बार काउंसिल द्वारा डिसीप्लिनरी एक्शन लिया जाता तो उसका विरोध  कर सकते थे और जुडिशल रिव्यु सिद्धांत के तहत माननीय न्यायालय में अपील भी दायर की जा सकती थी.  दूसरा कारण यह है कि कोई भी रूल ऑफ लॉ से ऊपर नहीं हो सकता। संविधान सभा में सरदार पटेल ने भी कहा था कि न्यायपालिका संदेश ऊपर होनी चाहिए। डॉक्टर अंबेडकर ने 4 नवंबर 1948 को संविधान का प्रारूप संविधान सभा में रखते समय  कहा था कि संवैधानिक नैतिकता भारत में नवीन है। अतः नागरिकों को चरित्र निर्माण में इसका रंग चढ़ने में समय लगेगा और इसके लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता होगी। इस प्रकार का विरोध अर्बन नक्सल की नीति का हिस्सा है। यह प्रयोग माननीय न्यायालय की गरिमा को संदेह के घेरे में लाने की सुनियोजित नीति है हिस्सा है।  लोकतंत्र में अवमानना न्यायपालिका  की ही मानी गई है क्योंकि उसे निष्पक्ष स्वतंत्र और न्याय की मूर्ति माना जाता है. इस अवधारणा को किसी भी प्रकार का ग्रहण नहीं लगना चाहिए। राज्य के विरुद्ध अवमानना नहीं मानी गई है. वहां अवमानना नहीं अपराध होता है और अपराध सिद्ध होने पर सजा दी जाती है. माननीय सर्वोच्च  न्यायालय का निष्कर्ष को सभी को स्वीकार करना चाहिए यही  रूल ऑफ लॉ  है।  माननीय न्यायालय का फैसला जो भी  हो उसे स्वीकार करना संविधान, संविधानिक संस्थाएं एवं संवैधानिक नैतिकता का सम्मान होगा। यह तो हर नागरिक  प्रथम कर्तव्य है - (अनुच्छेद 51 अ ) नयी शिक्षा नीति 2020 में संविधानिक नैतिकता और कर्तव्यों को चरित्र निर्माण का आधार बनाना, डॉ आंबेडकर के भारत  निर्माण की दिशा में शुभ संकेत है 

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