क्रिमिनल लॉ सुधार समिति द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता के लिए प्रश्नावली 1
क्रिमिनल लॉ सुधार समिति द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)में सुधार के लिए प्रश्नावली वेबसाईट पर अपलोड की गई, जिसे सात भागों में बांटा है।
गिरफ्तारी
धारा 41क में नोटिस की पालना में समयावधि को जोड़ना एवं पुलिस अधिकारी को समयावधि बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है। क्या दण्ड प्रक्रिया संहिता में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख होना चाहिए कि गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारी द्वारा व्यक्ति को फ्री लीगल एड, मेडिकल परीक्षण आदि के बारे में बताना अनिवार्य हो? इसी प्रकार निःशक्तजन के गिरफ्तारी, तलाशी, जत्थी सम्बन्धित कार्यवाही को स्पष्ट रूप से प्रावधानों, इसी प्रकार गिरफ्तारी आदि करते समय किस प्रकार की सावधानी पुलिस को रखनी चाहिए इसका स्पष्ट उल्लेख हो? इसी प्रकार धारा 41ख(ग) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति अपने रिश्तेदार या मित्र को अपनी गिरफ्तारी की सूचना देने के साथ वकील को भी अपनी गिरफ्तारी की सूचना दे सकें। साथ ही धारा 41घ के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को यह अधिकार हो कि वे पूछताछ से पहले और पूछताछ के दौरान वकील से सलाह ले सकें। इसी प्रकार मजिस्ट्रेट के समक्ष गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को पेश करते समय यह प्रावधान स्पष्ट उल्लेखित हो कि मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करें कि गिरफ्तारी करते समय पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया है।
जमानत
धारा 436ए के तहत इस बिन्दू पर विचार किया जा रहा है कि अधिकतम अवधि जिसके लिए विचाराधीन कैदी निरूद्ध किया जा रहा है, उसके लिए कुछ मानक स्थापित किया जाए। जैसे : जिन अपराधों का दण्ड सात वर्ष तक है, उनमें विचाराधीन कैदी जिन्होंने अधिकतम अवधि की एक तिहाई समय पूरा किया है, उन्हें न्यायालय द्वारा छोड़ा जा सकें और जिन अपराधों की सजा सात वर्ष से ज्यादा हो उसमें विचाराधीन कैदी जिसके द्वारा अधिकतम अवधि की आधा समय पूरा कर लिया हो, उन्हें न्यायालय द्वारा छोड़ा जा सकें। इसी प्रकार धारा 437 के जमानत की प्रार्थना पत्र के लिए समयबद्धता हो। इसी प्रकार धारा 437(5) में संशोधन किए जाने पर विचार चल रहा है, जहां कुछ निश्चित कारण एवं आधार होने पर जमानत को निरस्त किया जा सकें। जमानत के प्रार्थना पत्र की सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता को भी सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए। जमानत राशि तय करने के लिए किस प्रकार की शर्तों पर चिन्हित किया जायें। क्या धारा 436 में वर्णित स्पष्टीकरण को धारा 437क में भी जोड़ा जाना चाहिए। जमानत राशि के अलावा किस प्रकार की वैकल्पिक एवं अतिरिक्त शर्तों को जोड़ा जाए?
अन्वेषण
क्या पुलिस की अन्वेषण शक्तियां एवं कानून व्यवस्था सम्बन्धित कार्यवाही को पृथक नहीं किया जाना चाहिए? ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2014 2 एससीसी1 के तहत प्रारम्भिक जांच को वैधानिक स्वीकार्यता दे देनी चाहिए या दिए जाने पर विचार चल रहा है। जीरो एफआईआर सम्बन्धित प्रावधान स्पष्ट रूप से दण्ड प्रक्रिया संहिता में शामिल किए जाने पर मंथन है। सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर करने के लिए समयावधि तय किए जाने पर सुझाव मांगा है। धारा 161(3) में अमूल-चूक परिवर्तन प्रस्तावित किए गए है।
कार्यवाही शुरू करने के लिए अपेक्षित शर्तें
प्रोस्टेस्ट पिटिशन दायर करने का कारण स्पष्ट रूप से दण्ड प्रक्रिया संहिता में जोड़ने का सुझाव मांगा है। किस प्रकार जिन अपराधों में मात्र जुर्माने का प्रावधान है, उनके त्वरित निस्तारण के लिए योजना का सुझाव मांगा है। इसी प्रकार धारा 207 और 173 में संशोधन की मंशा है।
कानून व्यवस्था
धारा 106(2)(घ) में शांतिभंग को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की राय मांगी है। धारा 107 से 110 तक की शक्तियां क्यों नहीं न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्रदान की जाएं? यदि नहीं तो धारा 116 के तहत जांच की शक्तियां केवल न्यायिक मजिस्ट्रेट में निहित हों। इसी प्रकार धारा 117 में एक नया उपबन्ध जोड़ा जाए जिसमें स्पष्ट हो कि धारा 117 के तहत पारित आदेश में निर्णय के आधार स्पष्ट रूप से वर्णित हो। धारा 129 से 132 के प्रयोग में मौलिक अधिकारों को सर्वोपरि रखते हुए किस प्रकार की सावधानियां बरतनी चाहिए। धारा 144 को किस तरह से संशोधित किया जाए कि इसके प्रयोग में व्यक्तिगत अधिकारों एवं राष्ट्रीय सुरक्षा में कोई समझौता न हो। धारा 149 एवं 151 के दुरूपयोग को रोकने के लिए सुझाव मांगे है। साथ ही दोषी अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित की जावें।
इसी प्रकार अभियोजन एवं दण्डादेश के बारे में भी सुधार समिति ने सुझाव दिए है।
अधिक जानकारी के लिए https://criminallawreforms.in वेबसाईट देखें।
Great article
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