क्रिमिनल लॉ सुधार समिति
क्रिमिनल लॉ में सुधार के लिए केन्द्र सरकार द्वारा एक समिति का गठन किया गया है।
जिसकी जिम्मेदारी एनएलयू दिल्ली को दी गई है। गृह मंत्रालय द्वारा गठित इस समिति
का उद्देश्य है कि बदलते सामाजिक] आर्थिक तकनीक परिस्थितियों में दण्ड संहिता
में सुधार। समिति द्वारा एक प्रश्नावली बनाई गई है जिसे तीन भागों में बांटा गया
है। भाग-ए में स्ट्रीक्ट लाइबिलिटी सिद्धांत को आईपीसी में लागू करने का विचार रखा है। इसी प्रकार आईपीसी के अध्याय-तीन
में अतिरिक्त सजा का जोड़ने का प्रस्ताव भी है। साथ ही अध्याय-तीन में वर्तमान में
वर्णित सजाओं को समाप्त करने पर सभी लोगों से मत मांगा है। इसके अतिरिक्त सजा की
अवधि एवं जुर्माने का पुर्न निर्धारण करने का प्रस्ताव भी है। महंगाई के अनुसार
जुर्माना राशि के बढ़ाने/घटाने पर भी विचार किया जा रहा है।
प्रश्नावली
भाग-बी में आईपीसी के अध्याय-चार के विभिन्न धाराओं को संशोधित करने के लिए राय
मांगी जा रही है। ‘ignorantia juris non excusat’ सिद्धांत
पर चर्चा सामने आई है। जिसमें अध्याय-चार के अंतर्गत इस सिद्धांत को जोड़ने पर मंथन किया जाएगा। इस सिद्धांत के तहत कोई
भी व्यक्ति] किसी भी कानून का उल्लंघन करने पर यह तर्क नहीं दे सकता कि सजा से
नही बच सकता क्योंकि उसे कानून की जानकारी नहीं है। आपराधिक जिम्मेदारी के लिए
न्यूनतम उम्र में एकरूपता पर भी विचार किया जा रहा है। इसी प्रकार किसी भी मादक
पदार्थ को स्वेच्छा से सेवन पर सजा में बढ़ोत्तरी की जा सकती है या नहीं एवं
स्वेच्छा से मादक पदार्थ के सेवन करने पर परन्तु जानबूझकर कृत्य नहीं करने पर सजा
पर क्या प्रभाव होगा। इन प्रश्नों के सुझाव मांगे गये है। शरीर तथा सम्पत्ति की
निजी प्रतिरक्षा के अधिकारों के सम्बन्ध में किसी की मृत्यु होने पर दण्ड में
बदलाव किया जाना चाहिए या नहीं इस पर विचार किया जाना है। लोक प्राधिकारी द्वारा
निजी प्रतिरक्षा पर पुर्नविचार करने का प्रस्ताव भी है।
प्रश्नावली
के भाग-सी में यह प्रस्ताव है कि धारा 124 के तहत
सर्वोच्च न्यायालय-उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति] महाधिवक्ता] लोक
सूचना आयोग आदि को भी जोड़ने पर विचार किया जाए। राजद्रोह की परिभाषा] दायरा
आदि पर पुर्नविचार किया जा रहा है। राष्ट्र ध्वज] राष्ट्रीय
सम्पत्ति और संविधान के अपमान को भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत दण्डिय अपराध
बनाने पर विचार चल रहा है। मॉबलिचिंग, ऑनर
किलिंग,
कॉरपोरेट
होमिसाइट के तहत अपराध की श्रेणी में जोड़ा जाना है। यूथनेशिया को आत्महत्या का
दुष्प्रेरण का अपवाद किए जाने पर मंथन किया जाना है।
यौन
अपराधों के वर्गीकरण पर विचार किया जाना है। इसी के साथ धारा 375 के तहत
इच्छा का मापदण्ड पर सुझाव मांगे गये है। धारा 375 में
मेरिटल रेप पर चर्चा चल रही है। यौन अपराधों में लिंग तटस्थता को लागू करने का
प्रस्ताव है। प्रश्नावली के लिए https://criminallawreforms.in पर
सम्पर्क किया जा सकता है।
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