एनआरसी पर कागजों के कारण फैल रही है भ्रांतियां
एनआरसी पर कागजों के कारण फैल रही है भ्रांतियां
आसाम राज्य में एनआरसी लागू करने पर लोगों को परेशानियों के बारे में बोला जाता है और लिखा भी जाता है। इसमें प्रमुख कारण यह बताया जाता है कि आसाम में एनआरसी की सूची में नहीं जुड़ने का कारण एक मात्र जन्म प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं कराना पाया गया। तथ्यात्मक रूप से गलत है। इससे यह भ्रांति फैलाई भी जा रही है कि स्वयं या पूर्वज के जन्म प्रमाण पत्र नहीं होने पर सभी को आसाम जैसे परेशानी का सामना करना पड़ेगा। जबकि एनआरसी में नाम जुड़वाने के लिए एक दर्जन से ज्यादा में से एक भी दस्तावेज होने पर एनआरसी में नाम जुड़वाना पर्याप्त माना गया है। जन्म प्रमाणपत्र के अलावा दस्तावेजों पर चर्चा नहीं करने पर भय व आतंक का माहौल तथाकथित बुद्धिजीवी फैला रहे है। राजनीतिक दल भी इस असमंजस का फायदा उठा वोट बैंक की राजनीति से फायदा लेने में कोई संकोच नहीं कर रहे है। 1951 के एनआरसी में स्वयं या पूर्वज के नाम होने पर कोई अन्य दस्तावेज नहीं चाहिए। इसी प्रकार मतदाता सूची 1971 तक में भी नाम होना पर्याप्त बताया था।
दूसरों राज्यों में एनआरसी की प्रक्रिया में यदि आसाम प्रक्रिया की तर्ज पर समझे तो 1951 की एनआरसी व मतदाता सूची में वेबसाईट पर अपलोड की जावेगी व सार्वजनिक स्थल पर चस्पा की जावेगी। इसी प्रकार बैंक या पोस्ट ऑफिस में खाते पर भी एनआरसी में नाम जुड़ जाएगा। किसी भी शैक्षिण बोर्ड/विश्वविद्यालय के प्रमाण पत्र पर एनआरसी में नाम जोड़ने के लिए पर्याप्त होगा। सरकारी नौकरी या सरकारी प्रमाण पत्र को भी एनआरसी के लिए मान्यता दी जावेंगी। एलआईसी व पासपोर्ट के आधार पर एनआरसी में नाम जुड़वाने का भी प्रावधान होगा। सरकारी लाइसेंस जैसे ड्राइविंग लाइंसेस या अन्य लाइंसेस को एनआरसी में जुड़वाने पर अन्य लाइसेंस को एनआरसी में जुड़वाने पर कोई आपत्ति नहीं होगी। भूमि के अभिलेख या किरायेदारी के कागज भी एनआरसी में नाम जुड़वाने के लिए सरल बनाने होंगे। यहीं नहीं किसी न्यायालय में पक्षकार बनने पर भी एनआरसी में नाम जुड़वाने के लिए वैध कागज माने जावें।
इन सब कागजों में यदि पूर्वज का नाम हो परन्तु आवेदनकर्ता का नाम नहीं हो तो उसका समाधान भी आसाम में एनआरसी की प्रक्रिया में है। वहीं दूसरे राज्यों में अपेक्षित है कि इस स्थिति में स्वयं का जन्म प्रमाण पत्र, जमीन के कागज, शैक्षिण संस्था का प्रमाणपत्र, बैंक, एलआईसी व पोस्ट ऑफिस के रिकार्ड, मतदाता सूची में नाम या अन्य वैध कागज को एनआरसी में जोड़ने के लिए बताया जावें।
इस प्रकार संवाद, बहस या मांग तो कागजो की संख्या बढ़ाने/घटाने पर होनी चाहिए। जिस प्रकार एनआरसी 1951 में वर्ष अंकित है उसी प्रकार दूसरे कागजों में भी किस वर्ष तक के कागज मान्य हो इस बिन्दू पर चर्चा हो और इसका मापदण्ड तो राष्ट्रीय सुरक्षा ही हो सकता है। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। चूंकि एनपीआर 2010 भी किया जा चुका है। उसका भी किस प्रकार एनआरसी में उपयोग हो इस पर मंथन भी आवश्यकता है। इसी प्रकार एनपीआर 2020 व आधार कार्ड को भी ध्यान में रखते हुए एनआरसी पर स्पष्ट एवं जवाबदेह नीति का खुलासा अपेक्षित है।
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