कोरोना महामारी-कानूनी चर्चाएं ,मीडिया और प्रायश्चित
कोरोना महामारी को लेकर कानूनी चर्चाएं बहुत चल रही है। जिसमें यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि कौन सा कानून किस अपराधी के लिए उपयुक्त होगा। अलग-अलग राज्यों में पुलिस द्वारा अलग-अलग धाराएं लगाई जा रही है। .यह एक डिस्कशन का केंद्र बना हुआ है। एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 हो या राजस्थान एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1957 हो इन में पब्लिक सर्वेंट या पब्लिक ऑफिसर द्वारा जारी किए गए निर्देशों की अवज्ञा करने पर आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्रवाई की जा सकती है धारा 188 के तहत 6 महीने तक का कारावास या ₹200 तक का जुर्माना दिए जाने का प्रावधान है। तालाबंदी में सरकारी आदेशों की पालना नहीं करने पर 6 महीने तक की सजा का प्रावधान है और फाइन जो कि ₹200 तक का भी है। क्यों कानून बनाने वालों ने इतनी छोटी सी सजा रखी? जैसा कि ज्यादातर लोगों में यह एक भ्रांति बनी हुई है और एक डिस्कशन का पॉइंट भी बना हुआ है कि महामारी एक बहुत बड़ी विकट समस्या होती है. जिसमें लोगों को गंभीरता से व्यवहार करना चाहिए। अगर गंभीरता से व्यवहार नहीं करते या सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों का पालन नहीं करती तो क्यों नहीं कठिन कार्यवाही की जावे ? क्या राष्ट्रीय कानून या राजस्थान कानून कमजोर है? और महामारी रोकने में एक कमजोर साबित हो रहा है ? एपिडेमिकडिजीज एक्ट में कम सजा का प्रावधान एक मान्यता के अनुसार रखा गया है कि भारत में जो भी नागरिक रहते हैं वह सभी कानून की पालना करेंगे और उनसे यह भी अपेक्षा की जाती है कि संक्रमण- महामारी जैसी परिस्थिति में सभी नागरिक ना केवल अपने घरों तक सीमित रखेंगे बल्कि लापरवाही के कारण दूसरों की जान खतरे में नहीं डालेंगे यह एक शिक्षित और एक सभ्य समाज से अपेक्षा है जो कि कोई बहुत बड़ी अपेक्षा नहीं है। महामारी को रोकने के लिए आदेशों की पालना नहीं करने पर कोई अलग से सजा का प्रावधान एपिडेमिक एक्ट में नहीं है IPC की धारा 188 के तहत ही कार्यवाही की जाती है। इसका अर्थ यह है कि महामारी के दौरान अगर कोई भी दिशा निर्देशों की पालना नहीं करता है तो वह धारा 188 के तहत मुकदमा दर्ज होगा|
क्या भारतीय दंड संहिता महामारी में लागू होगी ? इसके लिए हमें धारा 269, 270 और 271 का अवलोकन करना होगा। जिसमें यह स्पष्ट है कि अगर कोई लापरवाही से महामारी को बढ़ाता है तो उसे 6 महीने की सजा या जुर्माना लगाया जा सकता है। इसी प्रकार अगर कोई जानबूझकर संक्रमण फैलाता है तो उसे 2 वर्ष का कारावास या जुर्माना लगाया जा सकता है। धारा 271 के तहत किसी को भी क्वॉरेंटाइन में होने के आदेश हैं, अगर वह उनको तोड़ता है तो उसे 6 महीने का कारावास या फाइन लगाया जा सकता है। अतः भारतीय दंड संहिता पूरी तरह से से सक्षम है। डॉक्टर के कह जाने पर अगर कोई भी 14 या 28 दिन क्वारंटाइन नहीं करता है ,
6 महीने का कारावास या फाइन लगाया जा सकता है। इसी प्रकार अगर निर्देशों के बावजूद अगर कोई अपनी जांच नहीं कराता है तो वह धारा 269 के तहत दोषी हो सकता है 271 के तहत अगर कोई भी संक्रमित पाया गया है और उसके बाद भी वह जानबूझ के तालाबंदी के आदेश की अवज्ञा करता है तो उसके विरूद्ध धारा 270 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए।
एपिडेमिक डिजीज एक्ट के कानूनी प्रावधानों में आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्यवाही की जा सकती है| परंतु मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में यह बात सामने आई है कि पुलिस और प्रशासन को कोरोनावायरस से लड़ने के लिए नेशनल सिक्योरिटी एक्ट को लागू करना पड़ा| नेशनल सिक्योरिटी एक्ट लागू करने के पीछे सरकार की मजबूरी नजर आती है इसके साथ ही समाज मैं राज्य द्वारा लोक हित में जारी निर्देशों की अवज्ञा का उदाहरण भी सामने आता है| क्योंकि नेशनल सिक्योरिटी एक्ट में किसी को भी 12 महीने तक बिना किसी कारण के निरुद्ध किया जा सकता है। इसलिए इस कानून को महामारी के युद्ध में लागू किया जा रहा है। यह कानून संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत संवैधानिक है . यह कानून हमें यह भी याद दिलाता है कि अंबेडकर जी द्वारा बताई गई संविधानिक नैतिकता आज भी भारत की आमजन में पूरी तरह से जड़ों तक नहीं पहुंच पाया है। क्योंकि इस कानून में वकील द्वारा कोई पैरवी नहीं की जा सकती है और न ही बेल के लिए कोई प्रावधान है.. यह कह सकते हैं कि अनुच्छेद 22 के तहत निरुद्ध में कार्रवाई जिला न्यायालय, उच्च न्यायालय एवं भारत के सर्वोच्च न्यायालय की परिधि से बाहर है। आज इस महामारी में कुछ लोगों के आचरण को देखकर लगता है यह विशेष प्रावधान के तहत की गई कार्रवाई सही है।
नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 के तहत (lock down) गाइडलाइंस या निर्देशों को जारी करने के बाद अलग-अलग राज्यों ने अपने यहां की स्थिति का अवलोकन करते हुए अलग अलग तरीके से कोरोना वायरस को रोकने में लगे हैं। गौरतलब है कि दी एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 को कुछ राज्यों ने अंगीकार किया गया एवं इसके तहत कुछ रेगुलेशंस बनाएं जैसे दी दिल्ली एपिडेमिक डीसीएस COVID 19 रेगुलेशन 2020 के क्रम में दिल्ली में पुलिस कमिश्नर ने सीआरपीसी की धारा 144 के आदेश जारी किए.
जबकि राजस्थान में राजस्थान एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1957 लागू है इसी प्रकार राजस्थान में भीलवाड़ा जब हॉटस्पॉट बन गया तो भीलवाड़ा जिले को कुछ पूरी तरह से सील कर दिया गया। बॉर्डर पर आने जाने की पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई.राजस्थान में भीलवाड़ा एक हॉटस्पॉट बना परंतु प्रशासन की मुस्तैदी और वहां के डॉक्टर पैरामेडिकल स्टाफ और सभी लोगों की मदद से वहां की स्थानीय लोगों की मदद से मिलकर आज भीलवाड़ा ना केवल राजस्थान में बल्कि देश में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर भी रोल मॉडल बन चुका है कि किस तरह अगर हॉटस्पॉट पर कम समय में कम संसाधनों में , एक अच्छी लीडरशिप और प्रशासन की तत्परता के कारण हॉटस्पॉट पर कम समय में काबू पाया जा सकता है
महामारी में मेडिकल पैरामीटर्स के अनुसार थर्ड स्टेज- कम्युनिटी स्प्रेड का डर बना रहता है। और इसी स्थिति को रोकने के लिए पूरे संसार में आज कई देशों में लॉक डाउन किया गया है। क्योंकि थर्ड स्टेज में आने के बाद उस महामारी को रोकना एक तरह से असंभव है। उसका परिणाम लाखों-करोड़ों लोगों की मृत्यु होती है। भारत जैसा देश जिसकी जनसंख्या बहुत अधिक है और पापुलेशन डेन्सिटी के अनुसार बहुत बड़ी चुनौती का सामना भारत को है। अगर कोरोना मांहमारी थर्ड स्टेज में पहुंच जाती है।
अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में निजामुद्दीन में तबलीगी जमात को लेकर कुछ खबरें चल रही है। उसका कारण मात्र यह है कि तबलीगी जमात में जो लोग एक ही बिल्डिंग में हजारों की संख्या में मौजूद थे उनमें से एक को कोरोनावायरस का संक्रमण पाया गया जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई और क्योंकि कोरोनावायरस संक्रमण के माध्यम से फैल रहा है इसीलिए तब्लीगी जमात के लोग जहां जहां जिस प्रदेश और जिलों में गए हैं वहां का प्रशासन उनको टीवी या सोशल मीडिया के माध्यम से प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से उन से अनुरोध कर रहा है कि वे जहां भी है वह सामने आए और यह बताएं कि वह कौन है जिससे कि ना केवल उनके स्वास्थ्य की उनकी जान की रक्षा की जा सके बल्कि वे जिन जिन की लोगों के संपर्क में आए हैं उन सब की भी जांच की जाए।
प्रशासन को इस प्रकार की टेस्टिंग करना आज के माहौल में न केवल नैतिक जिम्मेदारी है बल्कि यह एक लीगल रिस्पांसिबिलिटी भी है क्योंकि भारत के अंदर लॉक डाउन नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 के तहत लागू किया गया है जिसमें सभी राज्यों से अपेक्षा की जाती है कि वह केंद्र द्वारा जारी दिशा निर्देशों की पालना सुनिश्चित करावे .
तबलीगी जमात के फॉलोवर्स द्वारा प्रशासन को सहयोग नहीं देने पर नागरिकों के स्वास्थ्य और उनकी जान के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि कई राज्यों ने तबलीगी जमात के लोगों से यह कहा कि अगर वह स्वयं प्रशासन के सामने आकर अगर मदद नहीं करेंगे तो उनके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 304, 307 के तहत मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है। जिसके लिए वे स्वयं ही दोषी होंगे क्योंकि प्रशासन ने यह अपने आप को असहाय महसूस किया कि उनके द्वारा दिए गए निर्देशों की पालना में तबलीगी जमात के लोग द्वारा बिल्कुल भी सहयोग नहीं किया जा रहा है। कारण कोई भी हो आप किसी भी धर्म मान्यता या संप्रदाय में विश्वास रखते हैं परंतु भारत के संविधान में जन स्वास्थ्य को आधार बनाकर मूल भूत अधिकारों को भी करटैल किया जा सकता है। इस प्रकार राज्य द्वारा जारी निर्देशों की पालना नहीं करना एक तरह से हमारे समाज में ना केवल सामाजिक चेतना के बारे में प्रश्न उठाता है बल्कि इसमें हमें यह भी सोचने पर विवश करता है कि संवैधानिक नैतिकता की जो चेतना प्रत्येक वर्ग, जाति , धर्म ,संप्रदाय या पंत में पहुंचने चाहिए थी उसे पहचानने में हम पूरी तरह से असमर्थ रहे हैं। यह एक बहुत बड़ी बीमारी के बारे में सूचना है कि राज्य के दिशा निर्देशों की पालना जोकि लोकहित में है जनस्वास्थ्य जिसका आधार हैं उनकी पालना नहीं हो रही है.
इस पूरी चर्चा में एक व्यक्ति है जिसके बारे में अगर चर्चा ना करी जाए तो यह पूरी चर्चा ही अधूरी रहेगी मौलाना साद जिनके द्वारा एक ऑडियो जारी किया गया और उस ऑडियो में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सरकार द्वारा सोशल डिस्टन्सिंग गाइडलाइंस को न माने यहां तक भी कहा गया कि इस समय मस्जिद में जाकर नमाज पढ़े और अगर किसी को मृत्यु
मस्जिद में हो जाती है तो वह सबसे अच्छी मृत्यु मानी जाएगी। इस प्रकार के भाषण या इस प्रकार के प्रवचन अपनी जमात के लोगों को देना स्पष्ट रूप से भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राज्य सरकार की अवज्ञा की श्रेणी में आते हैं
अब तक हमने भारतीय दंड संहिता के तहत कानूनी प्रावधान की चर्चा की इसी क्रम में यह भी आवश्यक है कि जिन जिन धाराओं में कारावास के साथ-साथ जुर्माना लगाया जाता है उसमें सीआरपीसी की धारा 357 के तहत कंपनसेशन के रूप में खर्चा भी वसूला जा सकता है। अतः मौलाना साद से तबलिगही जमात में फैले संक्रमण के दौरान हुए खर्चे की राशि भी वसूली की जा सकती है।
कोई भी संस्था या व्यक्ति हो इस महामारी में सरकार को सहयोग नहीं देने पर और यदि उसके द्वारा असहयोग मिलने पर बहुत ज्यादा संख्या में लॉक डाउन प्रभावित होता है , गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम 1967 के तहत भी कार्रवाई की जा सकती जिसमे व्यक्ति या संघठन को बैन किया जा सकता है।
अब तक हमने भारतीय दंड संहिता के तहत कानूनी प्रावधान की चर्चा की इसी क्रम में यह भी आवश्यक है कि जिन जिन धाराओं में कारावास के साथ-साथ जुर्माना लगाया जाता है उसमें सीआरपीसी की धारा 357 के तहत कंपनसेशन के रूप में खर्चा भी वसूला जा सकता है। अतः मौलाना साद से तबलिगही जमात में फैले संक्रमण के दौरान हुए खर्चे की राशि भी वसूली की जा सकती है।
कोई भी संस्था या व्यक्ति हो इस महामारी में सरकार को सहयोग नहीं देने पर और यदि उसके द्वारा असहयोग मिलने पर बहुत ज्यादा संख्या में लॉक डाउन प्रभावित होता है , गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम 1967 के तहत भी कार्रवाई की जा सकती जिसमे व्यक्ति या संघठन को बैन किया जा सकता है।
मीडिया में कोरोना वायरस को लेकर कई तरह की चर्चाएं चल रही है कोई इसे चाइनीस वायरस कह रहा है तो कोई इसे कोरोना जिहाद कह रहा है। यह सारी जो चर्चाएं हैं यह एक ही बात का प्रमाण है की धुआं वही उठता है जहां आग होती है और जिन्हें भी यह लगता है कि यह इस प्रकार की चर्चाएं आज भारतीय मीडिया में चल रही है जिसके द्वारा मुस्लिम समाज को टारगेट किया जा रहा है तो इस पूरे प्रकरण में एक व्यक्ति--
मौलाना साद के द्वारा माफी मांगने पर पूरा मसला सुलझ सकता है
क्या माफी मांगने से मौलाना साद द्वारा किए गए अपराध कम किया जा सकता है कानून की नजर में जो भी न्याय होगा न्यायालय करेंगे परंतु राष्ट्र हित और सामाज में बढ़ती हुई दीवारों को कम किया जा सकता है और इसमें मौलाना साद की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है . एक बार अपनी समाज से , अपने धर्म से ,अपने देश से और मानवता से माफी मांगने पर सामाजिक दूरियां कम होंगी और जो भी प्रोपेगेंडा अभी चल रहा है उसका भी उत्तर मिल जाएगा जिसमें एक दूसरे पर दोषारोपण भी कम हो सकता है।
कोरोनावायरस के कारण होने वाले संक्रमण से संबंधित सूचना केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपनी अपनी वेबसाइट पर प्रतिदिन अपलोड कर रही है। कुछ दिन पहले तबलिगी जमात के कारण हुए संक्रमण वालों की संख्या भी दिखाई दे रही थी . मीडिया , अंतरराष्ट्रीय दबाव या सिविल सोसायटी के दबाव में आने के बाद केंद्र सरकार ने अलग से एक नोटिफिकेशन जारी किया जिसके तहत तबलीगी जमात के लोगों के द्वारा संक्रमण के आंकड़ों को अलग से नहीं दिखाने के निर्देश दिए। इन गाइडलाइंस की पालना में अलग से आंकड़े नहीं दर्शाया जा रहे हैं। इसको लेकर मीडिया में गर्मा गर्मी से चल रही है कि क्यों तबलिगी जमात को कोरोनावायरस के संक्रमण का मुख्य कारण बताया जा रहा है। अच्छा तो यह होता कि केंद्र सरकार की बजाय तबलीगी जमात द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करी जाती और उसमें तबलीगी जमात से जुड़े सभी लोगों से यह अपील की जाती कि वह जहां भी जिस भी जिले या कस्बे गांव शहर में हो वह स्वयं चिकित्सालय में आकर अपनी जांच करवाएं जिससे कि संक्रमण के इस युद्ध में भारत को सफलता मिलती। इसमें मीडिया ट्रायल अपने आप ही समाप्त हो जाता।
कोरोनावायरस को रोकने में लगे प्रशासन को दो प्रकार के आचरण पर विचार करना पड़ रहा है। एक तो तबलीगी जमात के लोग क्यों चिकित्सकों पर थूकते हैं ? दूसरा चिकित्सकों को किस मनोवृति से देखते हैं ?क्या कारण है कि अपना टेस्ट नहीं करवा रहे हैं? प्रश्न का जवाब तबलीगी जमात की फॉलोअर्स देवे ऐसा संभव नहीं दिखता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में तीनों प्रश्नों के उत्तर आसानी से जा सकते हैं एवं इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद आचरण में बदलाव अपेक्षित है . इस के साथ एक दूसरा पक्ष है वायरस महामारी के दौरान तालाबंदी में ऐसी कौन सी मजबूरी है जिसके कारण मुस्लिम समुदाय नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद में जाना पड़ता है धर्मगुरु समुदाय को यह समझा दे की नमाज घर पर बैठकर पढ़ी जा सकती है जिसके लिए मक्का का उदाहरण दिया जा सकता है यह कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं है। संवाद की कमी है।
दवा ,दुआ और दो वक्त की रोटी तालाबंदी के दौरान सबसे महत्वपूर्ण पहलू है . जिन्हें संक्रमण हो गया है वह चिकित्सक से सलाह लेकर पूरी दवा ले वे लोग जो घर पर आइसोलेटेशन में है उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह घर पर रहकर जो लोग संक्रमित हैं उनके ठीक होने के लिए ईश्वर से दुआ करें और जब भी जरूरत हो तो राष्ट्र में उत्साह वर्धन के लिए सामूहिक संकल्प को सिद्ध करें। इस दौरान कई लोग ऐसे हैं जिनको खाने और रहने की आवश्यकता है ऐसे लोगों को अपनी क्षमता अनुसार भोजन या रुकने का स्थान देखकर समाज के ऋण से मुक्त होने का अवसर न गँवाए
कोरोनावायरस के कारण होने वाले संक्रमण से संबंधित सूचना केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपनी अपनी वेबसाइट पर प्रतिदिन अपलोड कर रही है। कुछ दिन पहले तबलिगी जमात के कारण हुए संक्रमण वालों की संख्या भी दिखाई दे रही थी . मीडिया , अंतरराष्ट्रीय दबाव या सिविल सोसायटी के दबाव में आने के बाद केंद्र सरकार ने अलग से एक नोटिफिकेशन जारी किया जिसके तहत तबलीगी जमात के लोगों के द्वारा संक्रमण के आंकड़ों को अलग से नहीं दिखाने के निर्देश दिए। इन गाइडलाइंस की पालना में अलग से आंकड़े नहीं दर्शाया जा रहे हैं। इसको लेकर मीडिया में गर्मा गर्मी से चल रही है कि क्यों तबलिगी जमात को कोरोनावायरस के संक्रमण का मुख्य कारण बताया जा रहा है। अच्छा तो यह होता कि केंद्र सरकार की बजाय तबलीगी जमात द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करी जाती और उसमें तबलीगी जमात से जुड़े सभी लोगों से यह अपील की जाती कि वह जहां भी जिस भी जिले या कस्बे गांव शहर में हो वह स्वयं चिकित्सालय में आकर अपनी जांच करवाएं जिससे कि संक्रमण के इस युद्ध में भारत को सफलता मिलती। इसमें मीडिया ट्रायल अपने आप ही समाप्त हो जाता।
कोरोनावायरस को रोकने में लगे प्रशासन को दो प्रकार के आचरण पर विचार करना पड़ रहा है। एक तो तबलीगी जमात के लोग क्यों चिकित्सकों पर थूकते हैं ? दूसरा चिकित्सकों को किस मनोवृति से देखते हैं ?क्या कारण है कि अपना टेस्ट नहीं करवा रहे हैं? प्रश्न का जवाब तबलीगी जमात की फॉलोअर्स देवे ऐसा संभव नहीं दिखता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में तीनों प्रश्नों के उत्तर आसानी से जा सकते हैं एवं इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद आचरण में बदलाव अपेक्षित है . इस के साथ एक दूसरा पक्ष है वायरस महामारी के दौरान तालाबंदी में ऐसी कौन सी मजबूरी है जिसके कारण मुस्लिम समुदाय नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद में जाना पड़ता है धर्मगुरु समुदाय को यह समझा दे की नमाज घर पर बैठकर पढ़ी जा सकती है जिसके लिए मक्का का उदाहरण दिया जा सकता है यह कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं है। संवाद की कमी है।
दवा ,दुआ और दो वक्त की रोटी तालाबंदी के दौरान सबसे महत्वपूर्ण पहलू है . जिन्हें संक्रमण हो गया है वह चिकित्सक से सलाह लेकर पूरी दवा ले वे लोग जो घर पर आइसोलेटेशन में है उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह घर पर रहकर जो लोग संक्रमित हैं उनके ठीक होने के लिए ईश्वर से दुआ करें और जब भी जरूरत हो तो राष्ट्र में उत्साह वर्धन के लिए सामूहिक संकल्प को सिद्ध करें। इस दौरान कई लोग ऐसे हैं जिनको खाने और रहने की आवश्यकता है ऐसे लोगों को अपनी क्षमता अनुसार भोजन या रुकने का स्थान देखकर समाज के ऋण से मुक्त होने का अवसर न गँवाए

मेरा मानना है कि, मौजूद कानून से कॅरोना युद्ध नही जीता जा सकता ।
ReplyDeleteजब तक भय कठोर नही होगा इलाज संभव नही।
जो जाहिल कॅरोना का वातावरण जानबूझकर तैयार करने में लगे है।
प्रथम यह बात स्पष्ट है उन्हें राष्ट्रहित की कोई चिंता नही फिर राष्ट उनकी चिंता क्यों करे।।
1. ऐसे आक्रांताओ को सभी अधिकारों से महरूम कर देने की घोषणा हो।
2. जिंदगी के जो गुनहगार है जो जानबूझकर मानवता को तोड़ने में अपना भविष्यसफल देख रहे है उनकी सम्पतियों को जप्त किया जावे।।
3. जो राष्ट्रीय निर्देशों की लगातार अवमानना कर रहे है। उनकी सजा देशद्रोह की सजा से कम न हो।।