रामायण और महाभारत पूरी मानव जाति के लिए
महाकाव्य
भारतीय संस्कृति को जानने के लिए रामायण-महाभारत महाकाव्य से बेहतर और कोई साधन नहीं हो सकता है। रामायण-महाभारत में ऐसा एक भी पात्र नहीं है जिससे दर्शक अपने आप को जुड़ा हुआ महसूस नहीं करते है। यही नहीं रामायण-महाभारत में जो परिस्थितियां प्रस्तुत की गई है। वे सभी विषय हर व्यक्ति के सामने किसी न किसी रूप में उपस्थित होते है। आज भी रामायण और महाभारत पूरी मानव जाति के लिए निर्णय लेने के लिए उत्तम सहायक है।
1. श्रॉप - राजा दशरथ द्वारा चलाए गए शब्दबेदी बाण से श्रवण कुमार की मृत्यु हो जाती है, जिससे श्रवण कुमार के माता-पिता राजा दशरथ को श्रॉप देते है कि राजा दशरथ अपने पुत्र वियोग में मृत्यु को प्राप्त होंगे। इसी प्रकार महाभारत में महाराज पाण्डु द्वारा चलाये गये शब्दबेदी बाण से ऋषि और ऋषि की पत्नी की मृत्यु हो जाती है। ऋषि महाराज पाण्डु को श्रॉप देते है कि महाराज पाण्डु की मृत्यु पत्नी मिलन पर होगी।
2. पुत्र मोह - महारानी कैकेयी द्वारा भरतजी के लिए आयोध्या का राजतिलक और श्रीराम का 14 वर्ष का वनवास का वचन दशरथ से मांगा गया।राजा दशरथ को राजतिलक भरतजी को देने में कोई बहुत संकोच नहीं था, परन्तु 14 वर्ष का वनवास की बात सुनकर राजा दशरथ को बहुत पीड़ा हुई और पुत्र वियोग राजा दशरथ की मृत्यु का कारण बना। इसी प्रकार महाभारत में धृस्तराष्ट्र भी पुत्र मोह के कारण पांच पांडव के साथ न्याय नहीं कर पाए।
3. चोरी - महाभारत में गीता के संदेश में जो व्यक्ति मिल-बांटकर नहीं जीवन व्यतीत करता है उसे चोर कहा गया है जबकि रामायण में श्रीराम चन्द्रजी उस व्यक्ति को चोर मानते है जो दूसरे की तपस्या का फल का भोग करना चाहता है।
4. स्त्री - रामायण में कैकेयी के व्यवहार से दुःखी होकर भरत भी अपनी मां को इसलिए मृत्युदण्ड नहीं दिया क्योंकि कैकेयी एक स्त्री थी जबकि ताड़का नामक एक राक्षसी का वध राम-लक्ष्मण द्वारा किया जाता है।इसी प्रकार मंथरा द्वारा रचे गये षड़यंत्र के बारे में खुलासा होने पर भरतजी मंथरा को भी मृत्युदण्ड नहीं देते क्यों मंथरा एक स्त्री है।
5. क्रोध - लक्ष्मण जी चित्रकूट में भरतजी के प्रति संदेह उत्पन्न होता है कि वे श्रीरामचन्द्रजी का वध करने आए है और अपना धनुष उठाकर भरतजी पर हमला करने की तैयारी करते है, परन्तु श्रीरामचन्द्रजी लक्ष्मणजी को रोकते है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले यह पता लगाना आवश्यक है कि व्यक्ति मित्र है या शत्रु है। इस व्यवहार पर बाद में लक्ष्मणजी श्रीरामचन्द्रजी से पूछते है कि मुझे इतना क्रोध क्यों आता है। इसके जवाब में श्रीरामचन्द्रजी कहते है कि लक्ष्मणजी का व्यक्त्वि भावना प्रधान है जो कि अच्छी बात है परन्तु उनकी भावना पर ज्ञान का अंकुश होना चाहिए। साथ ही श्रीरामचन्द्रजी कहते है कि कभी गलत किए गए आचरण पर प्रायश्चित करना चाहिए। और प्राश्याताप सबसे बड़ा प्रायश्चित है।
6. धर्म - धर्म व्यापार की वस्तु नहीं है। भरतजी श्रीरामचन्द्रजी को कहते है कि उनके पिताजी यही चाहते थे कि एक भाई वनवास जाए और एक का राजतिलक हो तो क्यों नहीं भरतजी वनवास जाए और श्रीरामचन्द्रजी राजतिलक करवावें। इस पर श्रीरामचन्द्रजी ने कहा कि धर्म कोई व्यापार की वस्तु नहीं है।
7. कैकेयी - कैकेयी के व्यवहार पर श्रीरामचन्द्रजी ने कभी भी कैकेयी को माफ नहीं किया क्योंकि उनके अनुसार कैकेयी ने कोई अपराध ही नहीं किया और यही विचार महारानी कौशल्या का भी था। दोनों ने यह कारण बताया कि जब भी सामान्य घटनाओं में कभी भी कोई अनहोनी घटना घटती है तो उसका सम्बन्ध या तो व्यक्ति के प्रारब्ध कर्मों से होता है या विधाता की इच्छा से होता है। अतः कैकेयी को श्रीरामचन्द्रजी और कौशल्या ने कभी दोषी नहीं माना।
8. सीता और उर्मिला : सीताजी के श्रीरामचन्द्रजी के साथ वनवास जाने को श्रेष्ठ बताया जबकि लक्ष्मणजी की पत्नी उर्मिला को आयोध्या में राजमहल में रहकर सास-ससुर की सेवा करने को श्रेष्ठ बताया है अतः कोई भी निर्णय लेने के लिए एक माप दण्ड नहीं है। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार धर्म का अनुसरण करना चाहिए।
9. स्त्री का व्यक्तित्व - स्त्री का व्यक्तित्व बहुत सारे भागों में बंटा हुआ होता है। स्त्री में ममता का स्वार्थ निहित होता है। स्त्री को बेटी, बहु, पत्नी, सास, बहिन, ननद आदि की भूमिका निभानी पड़ती है जो कि बहुत ही कठिन होती है। स्त्री से श्रेष्ठ मां बनने की अपेक्षा भी है तो श्रेष्ठ पत्नी बनने का दायित्व भी उस पर डाला गया है।
10. कृष्ण के माता-पिता - आकाशवाणी होती है कि कंस की बहन का आठवा पुत्र ही कंस की मृत्यु का कारण होगा। इसके बाद कृष्ण की माता-पिता को कारावास में डाल दिया गया। प्रश्न यह उठता है कि वासुदेव-देवकी ने किन कारणों से यह स्वीकार किया कि सात संतानों को जन्म देवें। जबकि उन्हें मालुम था कि उनकी प्रत्येक संतान को कंस द्वारा जन्म लेते ही मार दिया जाएगा। इस ग्रुढ़ रहस्य यह बताया गया है कि पृथ्वी पर जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति द्वारा कुछ कार्य नियत है। जिन्हें भागवत शक्ति में अटल विश्वास है। वे केवल उसी शक्ति का निमित मात्र स्वयं को समझते है। इसी प्रकार वासुदेव-देवकी भी परमशक्ता में आस्था रखते है और लोक कल्याण और ईशइच्छा के सामने स्वयं द्वारा भोगी गई यातानाऐं दुःख और पीड़ा को सहन करते है। वे भविष्य के लिए एक द्वार के तरह होते है। जिन्हें यह कार्य दिया था जिसमें सात संतानों की मृत्यु भी उन्हें स्वीकार किया।
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