लॉकडाउन का सम्मान करें
कारोना वायरस से फैल रही महामारी से बचने के लिए विश्वभर में सभी देश पूरी तरह से इस महामारी को रोकने की चेष्टा कर रहे है। देश अपनी देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक आस्था, परम्परा को ध्यान में रखते हुए सभी प्रकार के कदम उठा रहे है। कोरोना महामारी के कारण अब तक विश्वभर में हजारों लोगों की मौत हो चुकी है और लाखों लोग कोरोना महामारी से ग्रस्त है, इनका उपचार चालू है।
इन परिस्थितियों में मानव व्यवहार को समझा जा सकता है। इस बीमारी ने कुछ तथ्यों को स्पष्ट कर दिया है कि अमीर देश हो या गरीब देश हो प्रगतिशील देश हो या तथाकथित प्रगति वाले युरोपिय देश हो कोरोना वायरस में लॉकडाउन के बिना इस महामारी से नहीं निपटा जा सकता है। किसी भी राज्य के लिए लॉकडाउन का निर्णय लेना बहुत मुश्किल होता है। इटली का उदाहरण हमारे सामने है, जहां पर लॉकडाउन बहुत बाद में किया गया। इटली सरकार ने यह माना था कि वो एक सम्पन्न देश है, वहां के नागरिक सम्पन्न है, वहां के नागरिक शिक्षा में भी विश्व में अग्रणीय रहे है, परन्तु इस महामारी के कारण जारी दिशा-निर्देशों की पालना में इटली के नागरिकों द्वारा अपेक्षित सहयोग नहीं किया गया। इटली सरकार की अपेक्षा बहुत ज्यादा नहीं थी। कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सबसे बड़ा हथियार है सोशल डिस्टेंसिंग । सोशन डिस्टेंसिंग में भीड़भाड़ वाले जगहों पर जाने से परहेज रखना एक शिक्षित समाज में कोई बड़ी बात नहीं है। इटली में तो शिक्षा के साथ-साथ वहां का समाज सम्पन्न भी माना जाता है परन्तु हुआ कुछ और ही। शिक्षित एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों से समाज के हित में आचरण करना भी इटली के नागरिकों द्वारा नहीं किया गया। यह व्यवहार मानव जाति के सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न बन गया है।
क्या इस आचरण में लोगों की लापरवाही, सामाजिक दायित्वों के प्रति उदासीनता या मानव असंवेदनशीलता जैसे व्यवहार सामने नहीं आते ? अगर एक समाज जो कि आर्थिक रूप से सम्पन्न है। जहां पर साधनों की कोई कमी नहीं है एवं तथाकथित शिक्षित भी है, तो मानव जाति को यह सोचना चाहिए कि हमारी शिक्षा में क्या कमी रह गई थी। क्यों आज की शिक्षा समाजिक दायित्वों के प्रति उदासीन है ? क्या कारण है कि पढ़ा-लिखा आदमी लोकहित में जारी निर्देशों की पालना नहीं कर रहा है ? श्री अरविन्द के शब्दों में कहे तो जो शिक्षा सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं से जोड़ने में असमर्थ हो वह शिक्षा, शिक्षा नहीं होती। इसका अर्थ यह हुआ कि शिक्षा की सार्थकता तभी मानी जाएगी जब व्यक्ति अपनी चेतना को सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय चेतना से जुड़ा हुआ महसूस करेगा। इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था में चेतना का उत्थान, विस्तार एवं एकीकरण के आधार पर ही मानव जाति के लिए प्रगति सम्भव है। अन्यथा विज्ञान में अर्जित सभी प्रगति सारहीन एवं मनोरंजन से ज्यादा कुछ नहीं है।
भारत भी कोरोना महामारी से बचा हुआ नहीं है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू का आव्हान किया गया। यह कर्फ्यू जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा स्वैच्छा से घर पर रहने के कारण सफल हुआ। जिसका सभी ने स्वागत किया। यह किसी प्रशासनिक आदेश या किसी कानून के अन्तर्गत नहीं था। यह कोरोना वायरस की गम्भीरता एवं सोशल डिस्टेंसिंग की पहली झलक देश में देखने को मिली। शाम को पांच बजे भारत ने पांच मिनट तक ताली-थाली बजाकर कोरोना महामारी में जुटे चिकित्सककर्मियों, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस, डिफेंस फोर्स आदि के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा 22 मार्च से 31 मार्च 2020 तक प्रदेश में लॉकडाउन का निर्णय लिया गया। लॉकडाउन को प्रदेश में गंभीरता से नहीं लेने की सूचना मिलने पर मुख्यमंत्री को कठोर निर्णय लेने की दिशा में मजबूर किया जा रहा है। जिसके लिए राजस्थान में रहने वाले लोग भी जिम्मेदार है। अगला कदम पूरे राज्य में कर्फ्यू ही होगा। अतः लोगों को लॉकडाउन में मिलने वाले शिथिलता का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए एवं स्वयं की एवं अपने परिवार एवं परिवार के हितों को देखते हुए एक समझदार नागरिक बन लॉकडाउन को सौ प्रतिशत सफल बनावें जिससे की कर्फ्यू जैसे कठोर निर्णय से बचा जा सके। आज ऑनलाईन बैंकिंग, एटीएम की वजह से किसी को भी नगद निकलवाने के लिए बैंक में जाने की जरूरत नहीं है। पेट्रोल, सब्जी, फल, दवाईयां आदि जैसी दैनिक जरूरतों को लॉकडाउन में चालू रखा जाता है। कर्फ्यू में इन सभी पर भी पाबंदी लगा दी जाएगी। अतः लॉकडाउन का सम्मान करें जिससे अनावश्यक परेशानी से बचा जा सकें।
Surya Pratap Singh Rajawat
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