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Showing posts from May, 2023

"धर्म क्षत्रस्य क्षत्रं" धर्म ही राजाओं का राजा है का प्रतीक है धर्म दंड- राजदंड-सिंगोल

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धर्म दंड- राजदंड-सेंगोल    वर्तमान समय में चर्चा विरोध का उत्सुकता जिज्ञासा का विषय बना हुआ है।  राजदंड का समर्थन और विरोध भारत की सामाजिक धार्मिक राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना का आईना है।  राजदंड भारतीय संस्कृति और इतिहास का विभिन्न रंग रहा है।  राजदंड प्रतीक है कि राजा सबसे बड़ा नहीं है राजा सर्वेसर्वा नहीं है  यही परंपरा भारत के रही है।  संविधान बनाते समय ऑब्जेक्टिव रिजर्वेशन की चर्चा किस सन में संविधान सभा की कार्यवाही दिनांक 20 जनवरी 1947  में डॉ एस राधाकृष्णन बताते हैं  कि जब भारत में दूसरे देश के लोग भारत में अध्ययन या व्यापार करने आते थे तो वह पूछते थे कि भारत का राजा कौन है तो उन्हें जवाब मिलता था "धर्म क्षत्रस्य क्षत्रं"   धर्म ही राजाओं का राजा है।  इसी परंपरा को स्वीकार करते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय का नीति वाक्य रखा गया यतो धर्मः ततो जयः   धर्म की राह पर आचरण करेगा जीत उसी की होगी अर्थात न्याय उसे ही मिलेगा। यह महाभारत में कुल ग्यारह बार आता है।   प्रोफेसर पी वी काणे  , भारत रत्न स...

Is Sengol "RAJDAND" secular ?

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  A beautiful  golden carving of ‘Nandi’ atop the ‘Sengol’,   will be installed in the new Parliament building to be inaugurated on May 28 2023.  Nandi atop  the Sengol popularly known as "Rajdand" reminds the first illustration of civilization of India on the page one of the  constitution of  India duly signed by members of Constituent Assembly on 24 Jan 1950.First illustration is NANDI  in the form of  the seal of Mohanjodaro  It is interesting that while discussing on the terms of republic , secularism Constituent Assembly members referred  to Dharam  . It is imperative to know the truth behind this term "secularism" in India .Meaning and interpretation was debated in the Assembly   on several occasions.   It is relevant to mention the debate dated  27 December 1948  of Constituent Assembly  for the amendment no 1146 standing in the name of  H .V. Kamath. Debates on the ...

सात्विक गुणों के अहंकार के चक्रव्यूह को समझते थे वीर सावरकर

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  ​ सुन्दरकाण्ड में भगवान श्रीराम के परमभक्त वीर हनुमानजी द्वारा अशोक वाटिका को नष्ट करते देख लंकापति रावण ने कई वीरों को हनुमानजी को बंदी बनाकर लाने को भेजा था। हनुमान जी सभी प्रकार के शस्त्रों को नष्ट करने में सक्षम थे परन्तु मेघनाथ द्वारा ब्रह्मशास्त्र चलाने पर उस शस्त्र के स्वामी ब्रह्माजी   के सम्मान के लिए स्वयं को बंदी बना लिया था। बंदी बनाकर जब हनुमानजी को रावण के दरबार में ले जाया गया था तब रास्ते में लंकावासी बच्चे हनुमानजी को अपमानित कर रहे थे , रामचरित मानस में अंकित है कि उन्हें पैरों से लात मार कर नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। परन्तु वीर हनुमान जी ने इस व्यवहार के प्रति संयम और धैर्य बनाये रखा और सही समय पर लंका को आग लगा दी थी। इसी प्रकार वीर सावरकर द्वारा जेल से आजादी के लिए माफी की अर्जी (mercy petition) को देखना चाहिए। हनुमान जी के लिए उनके आराध्य देवता श्रीराम थे तो वीर सावरकर के लिए भारत ...